पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२१७

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१९ २० २१ [ गोरख-वानी रिधि सकलै रोलाणी धरै । गुरू न पोजै मुरिष मरे। रौलाणीर आगै बैसै फूलि । गुर की वाचा गया जे भूलि ॥१॥ अकल पुरिस' कै सकल नियाव । मीठा बोले झूठा भाव । सतट बोले सोई सतवादी । झूठ बोले सो महा पापी ॥२०॥ देषत भौंदूप. विपिया पाई। झूठा बोलै मरि मरि जाई१२ । जैसा करै सो तैसा पाय । यकोतर से पुरिपा'४ नरकि लै जाय ॥२१॥ एक पुरिष बहुभांति नारी । सरब' निरन्तर आत्मसारी। सरव निरन्तर भरि पूरि रहिया । भात्मां बोध सपूरण कहिया ॥२२॥ पापे न पुन्ने लिपे२२ न काया । आत्मां बोध कथंत श्री गोरपराया। इती श्रीगोरप आतमबोध, पठते करते गुणते कथंते । पापि न लिपंते पुने न हर ते । ॐ नमो सिवाई ॐ नमो सिवाई गुरु मछिद्रनाथ पादुका नमस्तते । इति श्रीयातमां योध ग्रंथ जोग सास्त्र सपूरण समाप्तः । गोपीचंद आदि) राज्य क्यों छोड़ते। जो मनुष्य पशु से बने रहकर मंत्र जाप (अजपा जाप ) नहीं करते, ये मोक्ष को कैसे पहुंच सकते हैं ॥१८॥ लो धन सम्पत्ति यटोर कर एक रावलिन (जोगिन ) रख लेता है गुरु को मोज नहीं करता है, इस प्रकार वह मूर्ख मर जाता है। प्रसन्न होकर रोलाणी (रावलिन ) के चागे बैठा रहता है, गुर के पचनों को बिलकुल भूल गया 2 जिमने सकस (रक्षा रहित ), निलं प प्रम का अनुमघ कर लिया उसका सर व्यवहार न्याय पूर्ण होता है घाई या मिठ-बोला न हो। इत्यादि ॥१०॥ १. (८) रिघि सिघि फेल । २. (घ) रोलाणी। ३. (घ) श्रागे । ४. (घ) पैठा। ५. (घ) पुरस । ६. (क) झूठा। ७. (क) मीठा । ८. (प) सात । .. (घ) बॉल । 'सो' नहीं है । १०. (घ) मंदू । ११. (प) विपायाबाय । १२. (4) नाय । १३. (प) में नहीं । १४. (६) परीया (!)। १५. (५) यही । १६. (२) भय । १७. (१) निरंतरि । १८. (4) श्राम । १९. (५) भरपूरि । २.. (क) रहीया करीया । २१. (१) सपूरण । २२. (१) पार न पुनि लिये।