गोरख-बानी सबदी बसती' न सुन्य सुन्यं न बसती अगम अगोचर ऐसा। गगन-सिषर महिं बालक बोले ताका नाँच धरहुगे५ कैसा ॥१॥ परम तत्व तक किसी की पहुँच नहीं है ( अगम)। वह इन्द्रियों का विषय नहीं है (अगोचर)। वह ऐसा है कि न उसे हम वस्ती कह सकते हैं, और न शून्य । न यह कह सकते हैं कि वह कुछ है' (बस्ती) और न यह कि वह कुछ नहीं है (शून्य)। वह भाव (बस्ती) और प्रभाव (शून्य), सत् और असत् दोनों से परे है। (विशेष जोर देने की दृष्टि से 'सुन्यं न वस्ती' कह कर इसी बात को फिर से दोहराया है) वह प्राकास-मण्डल में बोलनेवाला । (आकाश-मण्डल में बोलनेवाला इस लिए कहा कि शून्य अथवा अाकाश या ब्रह्मरंध्र में ही ब्रह्म का निवास माना जाता है, वहीं पहुँचने पर घम साक्षात्कार हो सकता है। वहीं श्रात्मा को ढूंदना चाहिए । यालक इसलिए कि जिस प्रकार बालक पाप-पुण्य से अछूता है, उसी प्रकार परमारमा भी। जरा-मरण से दूर, काल से अस्पृष्ट सतत वाल-स्वरूप ही योगियों का साध्य भादश है। इसी लिए 'गोरख गोपालं' 'बूढ़ा बालं' कहे जाते हैं 1 ) उनका नाम ही कैसे रक्खा जा सकता है ? (क्योंकि वह तो नाम और रूप दोनों उपाधियों से परे है) ॥१॥ बालक १. (क) बस्ती। २. (ख) सुनी; (ग) सून्य; (घ) सुनि । ३. (ख) गिगनि । ४. (क) सिषर मैं ; (ख), (ग) मडल पै (घ) मंडल मैं ; (क) शिषर महिं । ५. (ख) कहौ धु(ङ) धरोगे ; (ग), (घ) घरौगे।
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