पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२१

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RO [गोरख-बानी इन बानियों के कर्ता गोरख कौन थे, किस समय हुए, इन प्रश्नों का विस्तृत विवेचन मैं अपने निबन्ध 'हिंदी काव्य की योगधारा' में कर रहा हूँ जो 'नोगे. सरी यानी' के दूसरे भाग के साथ प्रकाशित होगा । यहाँ पर इतना ही कह देना घस होगा कि नाथ-परम्परा में इनके कर्ता प्रसिद्ध गोरखनाथ से भिन्न नहीं समझे जाते । मैं अधिक सम्भव यह समझता हूँ कि गोरखनाथ विक्रम की ग्यारहवीं शती में हुए । ये रचनाएं जैसी हमें उपलब्ध हो रही हैं, ठीक वैसा ही उस समय की हैं, यह नहीं कहा जा सकता। परन्तु इसमें भी प्राचीन के प्रमाण विद्य- मान हैं, जिससे यह कहा जा कता है कि सम्भवतः इनका मूलोद्भव ग्यारहवीं शती ही में हुआ हो। जो भी हो, वास्तविकता तो हमारे सामने कर्ता की कीर्तिरूप यह कृति है। यदि कर्ता हमारी आँखों से श्रोमल भी रहे तो कृतज्ञता-पूर्वक उसकी कृति के अध्ययन का आनन्द तो हम उठा ही सकते हैं । यदि कर्ता भी हमारे लिए प्रत्यक्ष में व्यक्त हो जाये तो अहोभाग्य । परन्तु यहां कृति से व्यक्ति तह पहुँचने का प्रयास बहुत काल तक अनुमान ही की सीमा के अन्तर्गत रहेगा। अंत में उन सब महानुभावों के प्रति मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ जिन्होंने इस ग्रन्थ को प्रस्तुत करने में मेरी सहायता की है । कुछ सज्जनों का नाम ऊपर हस्तलिखित प्रतियों के सम्बन्ध में आ चुका है। इनकी उदारता के बिना तो इस कार्य का संपन्न होना असम्भव हो होता । परन्तु इनके अतिरिक्त और भी अनगिनित सज्जन हैं-कहां तक नाम गिनायें-जिन्होंने प्रकट या अप्रकट रूप से मेरी सहायता की है। जिन्होंने अपने देखने में मेरी थोड़ी ही सहायता की है, उनकी सहायता भी मेरे लिए अमूल्य सिद्ध हुई है। 3 पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल