पंद्रह तिथि बदै गोरष एककार' | पंद्रह तिथि का करहु बिचार ॥टेक॥ अमावस दिढ़ पासण" होइ आतम° परचै मरै न कोइ । मूल सहन पदनां बहै । वंक नालि तब वहत रहै।" ॥१॥ पड़िवा है द्वे पष१२ की आदि । सतगुरु सबदा सहज समाधि । गगन मंडल में रहे समाइतौ चारि जुग लौं हेलै टलि जाइ ॥२॥ दुतिया द्वै कुल उधरन धीर । उनमन मनवां अखलि सरीर । बाहरि भीतरि एककार। गुरु प्रसादै भौ निधि पार ॥३|| तृतीया तृबेणी करौ स्नान । पाप पुनि दोउ देउ१५ दान । तब जोग जुगति पानी' बिसवास । जुरा मरण नहीं कंध विनास॥४॥ चौथे चंचल निहचल करौ। काल विकाल दूर परहरौ ।। जम जौरा का मदौमांन । सतगुर कथिया पद निरबांन ॥५॥ यदि मांगी प्रारंध्र में समाया रहे, तो चार युग तक सेलवाद में भासानी से कट जाते हैं अर्थात् एक प्रलय से दूसरे प्रनय तक उसका कोई कुछ नहीं कर सस्वा ॥२॥ चंचल -मन जौरा=यमराज । जोर देने के लिए जम बोरा कहा गया है। ऐसे ही प्रयोग शब्दों को चोतन शक्ति को घटाते हैं॥५॥ पंद्रह तिथि (क) (ख) (5) और (अ) के श्राधार पर । १. (क) बंदौ । २. (घ) () एकंकार । ३. (घ) सोहे (5) सोलह । ४. (5) में नहीं; (घ) करूं। ५. (घ) श्रासन दिढ । ६. (१) होय" कोय । -७. (घ) प्रात्म । ८. (घ) सहभ। ९. (घ) (क) फिरै । १०. (क) नव । ११. (घ) बहतरि भरे । १२. (प) द्वै पछि। १३. (घ) () में समाइ, आदि के 'द के स्थान पर सर्वप्र'य' है । १४. (प) भए निधि पार । १५. (क) चौ; (घ) चौह। १६. (भ) पाये। १७. मरन । १८. (5) गुर। १९. (क) नृांन । २६
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