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पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२२६

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. गोरख-बानी] १८७ गोरष-स्वामी श्रादेस का कौंन उपदेस, सुनि का कथं वास । सबद का कौन गुरू, पूछंत गोरषनाथ ॥५॥ मछिद्र-अवधू आदेस का अनूपस" उपदेख, सुनि का निरंतर बास। सबद का परचा गुरू, कर्थत मछिंद्र नाथ ॥६॥ गोरष-स्वामी मनका कौन रूप, पवन का कौन आकार । दंम की कौंन दसा, साधिवा कौंन द्वार ॥ ७॥ मछिंद्र-अवधू मन का सुनि रूप, पवन का निरालंभ आकार। दम' की अलेष दसा, साधिवा दस द्वार ॥ ८॥ गोरष-स्वामी कौंन पेदि१६ बिन डान २, कौन पंपिउदिन सूवा । कौन पालि विन नीर, कौन चिन कालहि ४ मूवा । मछिंद्र-अवधू पवन पोड़ विन डान, मन पंपि बिन सूवा । धीरज पालि बिन नीर, निंद्रा बिन कालहि ४ मवा ॥१०॥ गोरष-स्वामी कौंन बीरज कौंन षेत्र । कौन सरवणकौन नेत्र । कौन जोग कौन जुगति । कौंन मोक्ष कौंन मुकति१६ ॥११॥ मछिद्र-अवधू मंत्र बीरज मति पेत्र । सुरति श्रवणं निरति नेत्र । करम जोग धूरम जुगती । जोति मोक्षि ज्वाला मुकति ॥१२॥ गोरष-स्वामी कौन मूल कोण वेला । कौण गुरू कोण चेला ॥ कौण क्षेत्र कौण मेला२२ । कौण तत्व ले रमैं अकेला ॥१३॥ मछिंद-अवधू मन मूल पवन वेला सबद गुरू सुरति चेला ।। त्रिकुटी षत्र उलटि मेला । नृवाण तत्व ले रमौर अकेला ॥१४ AR १.(क),(प) सुनि। २. (क) शन्द । ३.(घ) पछत जती । ४. (क)गोर्षनाप । ५. (घ) अनोपम । ६. (घ) श्रीमछिंद्र ७. (घ) दवार । ८. (घ) निरालंब ९. (घ) दम । १०. (क) दस्वां । ११. () पेड़। १२. (घ) 'बिन' के स्थान पर सर्वत्र "रिणः । १३. (घ) पंप । १४. (५) कालि । १५. (प) भवण । १६.(१) एकति...मुक्ति । १७. (क) बसि । १८. (क) ऊर्म। १६. (क) धूरिम २०- (१) ति...मुछि। २१. (घ) मोछि। २२. यह चरण (क) में नहीं है। २३.(क)फिरौं।