पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। गोरख-बानी] १६ फैसै अविगत' का सुषं लहै। सतगुर होइ सु बुमयां कहे ॥८५ मछिंद्र-अवधू संतोष सोरे आसण विचार सो ग्यांन । काया तजि करि धरिये ध्यान ॥ " अबिगत का सुष लहै । ऐसा विचार मछिद्र कहै ।।८।। गोरप-स्वामी कोण संतोष, कोण विचार । कौण ध्यान काया कै पार। कैसे इन मैं मनसा रहेट । सतगर होइ सु खुमयां कहै ॥८॥ मचिंद्र-नृभै संतोष अनभै विचार । दुह मैं ध्यान काया के पार । गरु मुषि मनसा इन में रहै । ऐसा विचार मछिद्र कहै ।। गोरए-स्वामी पाइ बिन कौन मारग११, चक्षिारविन कौन दृष्टि। करणबिन कौण श्रवण । मुषविन कौण सबद ।।६।। मछिंद्र-अवधू पाइ विन विचार मारग, पक्षिविन निरति द्रिष्टी। करण विन सुरति श्रवण, मुष"विन'"लय सबद ॥१०॥ गोरष-स्वामी कोण सोधोवती कारण सो आचार। कोण जाप मन तजे विकार। कौण भाव मैं नृभैरहै । सतगर होइ सु वुझ्या कहै ।।१।। छिद्र-अवधू ध्यान सो ब्रह्मा आचार । अजपा जाप मन तजै बिकार। आतम भाव यै नमै रहै । ऐसा विचार मविंद्र कहै ॥२॥ गोरष-स्वामी कोण सो कोण सो आप।कौंण सोमाई कौण सो बाप। कैसे मन मैं दरियावररहै। सतगर होइ सु बृझ्या कहै ॥६॥ १. (घ) अवगति । २. (घ) में नहीं है। ३. (घ) सु। ४. (घ) परिवा। ५.(घ) गुर मुषि । ६. (क) में नहीं। ७. (क) ऐ । ८. (घ) मनवा यन में रहै । ६. (क) मनभै । १०.(घ) दहूँ। ११. (घ) कौंण पाव विण मारग। सब प्रश्न ऐसे ही गठित है। १२. (घ) चषि । १३. (क) कर । १४. (घ) मुषि । १५. (घ) विनि; ऊपर सर्वत्र विण'। १६. (घ) में नहीं । १७. (घ) निरम । १८. (घ) स पूछनां । १९. (घ) में 'सो' नहीं। २०. (५) विचार । २१. (घ) अपभै भाव मैं । २२. (५) दरिया । २३. (घ) पूछयां । २८