आपा जोवै १६८ [गोरख-बानी मछिंद्र-अवधू सबद सो ॐ जोति सो श्राप । सुनि सोई माई चेतनि बाप । निहचल' मन मैं दरियाव रहै ऐसा बिचार मछिंद्र कहै ॥११॥ गोरष-स्वामी कौंण सो चेतनि कौंण सार । कौंण निंद्रा कोण काल । कौण महि पांचौं तत्व" समि रहै। सतगुर होइ सु बमयां कहै ।।५।। मछिंद्र-अवधू जोति चेतनि निरमैं सार । जागिबा उतपत निंद्रा काल । जोति महि पाँचौं तत्व समि रहै ऐसा विचार मछिंद्र कहै ॥६६॥ मोरष-स्वामी कौंण बोलै कौंण सोवै । कौंण रूप में कौण रूप मैं जुगि जुगि रहै । सतगुर होइ सु बूझयां कहै ॥१७॥ मचिंद्र-अवधू सबद बोलै सक्ति सोवै । प्रदेष रूप मैं आपा जोवै । अरूप रूप मैं जुगि जुगि रहै । ऐसा विचार मछिंद्र कहै ॥८॥ गोरष-स्वामी कौंण मुपिरहणी कौंण मुषि ध्यान, कौण मुषि१ अमी रस कौंण मुषि पांन । कौण मुषि छेदि१२ वदेही ३ रहे सतगुर होइ सु बुमयां कहै ।। ९६ ॥ मछिन्द्र-अवधू सहज' मुषिरहणीं सक्ति'"मुषि ध्यान, गगन मुपि' अमीरस१६ चित मुषि पांन । आसा मुषि छेदि वदेही रहै । ऐसा विचार मछिन्द्र कहै ॥१०० गोरष-स्वामी कौंणामुपि श्रावै कौंण मुषि जाइ । कौण मुपि होइ काल कौं पाई। १. (घ) निहिनल । २. (घ) दरिया ।३. (घ) 'स' अधिक । ४. (घ) मैं । ५. (घ) पंच तत ! ६. (घ) जरि रहे । ७. (घ) पूछयां । ८. (क) निरभय । ६. (१) उतपनि । १०. (क) मुष । ११. (घ) हंस । १२. (क) छेदै । १३. (८) विदेदी। १४. (क) अवन्ध । १५. (घ) सकति । १६. (घ) अमीरस । १७. (प) कू।
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