पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२४६

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रोमावली सत पिता रज माता तम करि गाड़ी पाई२, लोह मास तुचा नाड़ी ये चारि धात माता की बोलिये३, बीरज हाड गूद्र ये तीनि धात पिता की बोलिये, ए सप्त धात का शरीर बोलिये। द्वै५ हाथ व पैर छाती लिलाट घाट अष्टांग जोग बोलिये। बंद भेद मुद्रा तीन्यू साधंति ते सिधा बोलिये। कौण बंधि बांधिये, कौंण भेद भेदिये, कौंण मुद्रा मुदिये १ एबोलिये घट भीतरि । ते कौंण कौण । मन २ बन्धि बांदिये 3 पवन भेद भेदिये विंद मुंद्रा मुंदिये। कौंण बिमला विचारै कौंण रैि कौंण मरै। मन बिमल विचारै सूरज पिरै चंद्र झरे। हिंद पीर जिंद पीर ए बोलिये घट भींतरि५। ते कोण कोण । हिंद पीर बोलिये मन, जिंद पीर बोलिये पवन । षेचरी भूचरी गुपत प्रगट । ते कौंण कौण । गाड़ी पाई='मत्यु प्राप्ति'-(भ), गाहा जाना पाया । पिरैक्षरित करता (या होता ) है, नष्ट करता है। रोमाग्नी (क) (घ) और (अ) के आधार पर । १. (घ) मप सत । २. (घ) गाड़े पाए लोह मांस । ३. (घ) में वोलिये बंधीये आदि रूपों में मध्याक्षर में सर्वत्र दीर्घ 'ई' की मात्रा और अंत में यदि टिप्पणी में रूप बतलाया नहीं गया है तो सर्वत्र 'ए । ४. (घ) गुद मीजी। ५. (५) दोय । ६. (घ) वाट । ७. (क) घाट अष्टांश । ८. (घ) विंद मेद । ८. (घ) तीन { १. (घ) सावंत । १० (घ) सिध। (घ) में इसके आगे प्रत्येक प्रश्न 'तौ त्वामी' से प्रारम्भ हुआ है, और प्रत्येक उत्तर 'तौ अवधू' से । ११. (घ) बंदीयै। १२. (घ) में 'मन' के पहले 'अवधू'। १३. (घ) बंध बंधीए । १४. (क) बिमले । १५. (क) 'भौंतरि के स्थान पर सर्वत्र 'भीतर।