पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२६७

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२२४ [गोरख-बानी पृथ्वी का बैठा सुभाव, आप का सीतल सुभाव, तेज का ताता सुभाव, बाई का चंचल सुभाव, आकास का ऊभा सुभाव । तौ स्वामी आकास का कोण घर कौंण द्वार कौण आहार कौण निहार' कौण ब्यौहार । बाई का कौंण घर कौंण द्वार कौंण आहार कौंण निहार कौंण व्यौहार। आप का कौंण घर कौंण द्वार कौंण आहार कौंण निहार कौंण व्यौहार। तेज का कौंण घर कौंण द्वार कौंण आहार कौंण निहार' कौंण व्यौहार । पृथ्वी का कौंण घर कौंण द्वार कौंण आहार कौंण निहार कौंण व्यौहार। आकास का ब्रह्मड घर श्रवन द्वार सुनै सुआहार जिह्वा निहार दिम्भ पाषंड ब्यौहार । बाई का घर नामी नासिका द्वार बासना अहार निरवासीक निहार अह क्रोध ब्यौहार। तेज का पीता घर चळू द्वार द्रिष्ट देषे सु आहार हरष निहार प्रीती मोह व्यौहार। आप का लिलाट घर यन्द्री द्वार स्त्री आहार बिंद निहार' मैथुन ब्यौहार । पृथ्वी का घर कलेजी गुदा द्वार षाइ सु आहार अमरी बजरी निहार लोभ लालच ब्यौहार। तौ स्वामी पृथ्वी का कौंण गुरू तेज का कौंण गुरू बाई का कौंण गुरू आकास का कौण गुरू। १. (क) (ङ) में नहीं है । २. (क) सर्वत्र 'व्योहार', (घ) में प्रश्न और तदनुकूल उत्तरों में भी क्रम में भेद है, उसमें यह क्रम है, पृथी, अप, तेज, वाय, अकास । ३. (घ) सर्वत्र 'वाय'; (ड) सर्वत्र 'वायुः । ४. (घ) डिंभ; (ङ) डंभ । ५. (घ) चषि (ङ) चक्षु । ६. (घ) में गुरु संबंधी पश्नोतर, घर, द्वार, आहार न्यवहार संबंधी पश्नोतर से पहले दिया गया है।