पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२९७

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२५० [गोरख-बानी घटसै सांस । तिस चक्र ऊपरि द्रिष्टचक्र, लिंग अस्थांने षट दल कंवल यटसै सांस । तसि चक्र ऊपरि मणिपुर चक्र, नामि अस्थांने, दस दल कंवल, षट सै सास । तिस चक्र ऊपर अनहद चक्र, हिरदा सथांने द्वादस कंवल, षटसै सास । तिस चक्र ऊपर विसुध चक्र; कंठ सथांने पोड़स कंवल, एक संहसर सास, अजपा गावत्री पारब्रह्म ध्यान । तिस चक्र ऊपरि अगनि चक्र, नेत्र सथांने पोड़स दल कमल एक सहस्र सास अजपा गावत्री पारब्रह्म ध्यान । तिस चक्र ऊपर गिनांन चक्र, ब्रांड सयांने एक सहघ दल कमल एक सहस्र सास । अजपा गावत्री पार- ब्रह्म ध्यान । तिस चक्र ऊपरि सुछिम चक्र, विग्यांन सथांने एक वीस सहंस्र दल कमल । ए अप्ट कमल का जांण मेव । श्राप करता आप देव । इती अष्ट चक्र कथंत जती गोरपनाथ संपूर्ण । [ख]-(८) रह रासि प्रादेस श्रादेस अलप अतीतं । तदा न होती धरती न पाकासं ।। तदा काले सिंभू भई हमारी उतपन्य। माठा न लेवी दस मास मार। पिता न फरिवा आचार विचार। जोनी न पायवा, नामिन कटाइवा । पुस्तग पोथी ग्रहमा न पचायया । नहां भलेप पुर पटणि अनोपम सिला तहां बैठे गोरपराई । तुम दमदी चमढ़ी का संग्रह फरौ । गुर का सबद ले ले दोजिग भरौ ।। गुती पक्र चलायी हथियार । पंदित युधि बहोत प्रकार ॥ ऊमा से मिथ पेठा पापांण । श्री गोरप वाचा परयांए । अनंत नियां में रहामि की । गोदावर्ग के मेन गेमी मई ।।