पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२९९

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२५२ [गोरख-बानो तवक ऊपर चित मेस्यौ । षोड़स कवल पतीस पंषुड़ी सममया जुरा गई। दस उनमनी । सम तति वा सबद ॥२॥ मांविलियौ थलि मौरीयौ। भांबलीयो आत्मा । थल ब्रह्म । नीच वपु । विजौरा विचारा। रेक । ऊँट सिमांण जब प्रामौ । ऊंट प्रापौ। सिचाणौ सबद । कैरू करम । चांझ आत्मां । बेटौ ग्यांन । पुरिष न दीठी। पुरिप परमेश्वर बिना भौर पुरिष । लाकड़ चूदै सिल तिरै। लाकड़ कठोर सिला सुघ । ऊंट आपी। प्रनाली प्रीति सुसती सांसो। मछ मन । हूगर ब्रश । जल संसार । ससौ सांसो। पांणी वूद । ब्रह्म अनि । रहट रटणि । सूल बिरह । कांटा क्रम | गाय आत्मां नौ नाडि पंच भू । फूल कवल । करडीया कली। पग परम मिनां चोरी। गाय मनसा धरचा में व्यावै नहीं ॥३॥ भावी नै चोसी जोवी विचारी । वाय नहीं कार बादल घट । तारा गुण । तेन त्रिगुण । यंभी सबद । गप सप । माया माया। पीव प्राण मांहि डोले । कर माया गंग जमुन सास उसास । विचि पाट पट । पांच यंद्री छठी मन । ईस प्राण विधाय । दोय गुण तले ऊरि । चावल पोपी ॥४॥ आवी माई धरि धरि जावो । धरि धरि घरया की तासीर जाई ॥टेक ।। पारा मिंद, नाद सवद, समि सूर ताता सीला । पवन गोटिका । श्राफाम जय । गगन कयल । रोगी मनमा । मुनि समाधि ॥ ५॥ ऐसा रे उपदेस दारे श्री गुर राया। स्वास मुसमवेद । बिधिरदि। भजपा लाम: विषमी संघी नामि। चिनादी चमन ।। ६॥ -