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पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/३००

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गोरख-बानी] २५३ ॐ नमो सिवाय स्वामी ॐ सिवाय । अह निस राति दिन बाई ईश्वर बिना बहै है। कौण मंत्र कोण उपाय वसि होय। ताका रे मैं चेला । टेक । गुरू कहै ॐ कार जो बैं सू मूल मंत्र ॐ । ताहि करि संसार पंडित छ । नाभि ह्रदा विचि वहै तो देवगुरु बतावा । सो ते साधे बिना सिधि नाहीं । ॐकार करि नरहरि ब्रह्मा महादेव प्रसिधि है । नाद सब को निधान । षट चक्रां कू' बेधिधे फू बाई ही संम्रथ है। वाई ही सोहं हूँ बित रष नहीं पिंड, बिषै असधि वहै । बिंद कूबाई जीते । मन कूमन मारे । मनकू मन तारै । त्रिभवन मैं मन मन देपै । श्रादि मनहीं समाइसी ( समडिसी-यथा दृष्ट )। अति सुधि मनह समझ्या काम । मन ही सूविपै छुटै अनि करणी नाहीं । विंद रज की भांड है। बारा कला सूरज, सोला कला ससि । रज रेत सम जे है तब परम गति होय । यत्ती समि कीयां आपै आप है। पंच तत्त्व की समझि है ॥७॥ गुरु कीजै गहला निगुरा न रहिला । कोयला मन । दूध तीरथ । काग मैन । पहुप पुरांन । भामा काया। काग काल । उत्तर सबद में। पछिम पाछिली बुधि । दूजा अरथ । उतर माया। पाछिल परमेश्वर । चींटी मनसा। गजिंद्र मंन । गाय आत्मां । बाघ ग्यांन ॥८॥ गोरष बालूड़ी बोले सतगुर चांसी । गोरष यानड़ा, जीवन परण्या नहीं। अगनि ब्रह्म । पाणी राम रस। टेक । पोलो मन । मीसि काया । विरोले विचार । सासू सुरति । बहू बुधि । कोयल बांणी । आंच भात्मां । गगन ब्रह्म । मछली मनसा । बुगलौ काल । करसंण काम पाको । रखवाली काल । मृघला मनोरथ । पारधी मन । सींगो सुरति । नाद सघद ॥९॥