पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/४२

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oms गोरख-बानी] १९ अवधू नव घाटी रोकि लै बाट । बाई बणिजै चौसठि हाट । काया पलटै अविचल विध५ । छाया बिबरजित निपजै सिध ॥५०॥ अवधू दंम कौं गहिबा उनमनि रहिबा, ज्यू बाजवा अनहद तुरं । गगन मंडल में तेज११ चमकै१२, चंद नहीं तहां सूर ॥५१॥ सास उसास बाइ73 कौं भषिबा'४, रोकि लेहु१५ नव द्वार। छठ छमासि काया पलटिबा१६, तब उनमँनी जोग अपार ॥२॥ अवधू सहस्त्र नाड़ी पवन/२ चलेगा, कोटि झमकै१९ नादं । बहतरि २० चंदा बाई सोप्या किरणि प्रगटी२६ जबर२ श्रादं ॥५३॥ श्रवधूत ! शरीर के नवों द्वारों को बन्द करके वायु के आने जाने का मार्ग रोक लो। इससे चौसठों संधियों में वायु का ब्यापार होने लगेगा। इससे निश्चय ही कायाकल्प होगा। और साधक सिद्ध हो जायगा जिसकी छाया नहीं पड़ती ॥२०॥ हे अवधूत, दम (प्राण) को पकड़ना चाहिए, प्राणायाम के द्वारा उसे वश में करना चाहिए। इससे उन्मनावस्था सिद्ध होगी। अनाहत नाद रूपी तुरी बज उठेगी और ब्रह्मरंध्र में बिना सूर्य या चंद्रमा के (ब्रह्म) का प्रकाश चमक उठेगा॥११॥ (केवल कुम्भक द्वारा) श्वासोच्छवास का भक्षण करो। नवों द्वारों को रोको। छठे छमासे कायाकल्प के द्वारा काया को नवीन करो। तब उन्मन योग सिद्ध होगा ॥२॥ हे श्रवधूत शरीर में फैले हुए सहस्रनामो-जाल में जब पवन का संचार १. (ख) लेवा । २. (ग) (घ) घाट । ३. (ग) वणजै (घ) बिणजे । ४. (ख), (ग) चोसठि; (घ) चौष्ठि । ५. (ख), (ग), (घ) बध । ६. (ख) छाय । ७. (ख), (घ) विबरजत, (ग) विवरज । ८ (ख), (ग), (घ) दमकू । ९. (क) उनमन (घ) उनमन्य। १०. (ग), (घ) तब । ११. (ख) जोति । १२. (क) (ख), (ग) चमकै । १३. (ग), (घ) बाय । १४. (क) भछिबा । १५. (ख) लेबा (ग) लै (घ) लेह । १६. (ग) (घ) पलटै। १७. (ख) सहंसर; (क) (घ) सहश्र; (ग) सहस्र । १८. (ख), (ग), (घ) हस । १९. (क) झमका। २०. (क) बहतर; (ख) बहोतरि । २१ (ख), (ग), (घ) प्रगटै। २२, (ग), (घ) में नहीं। .