पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/४७

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१४ १४ १८ ११ 9 २४ [गोरख-बानी नमी सोभंत बहु' जल मूल २ विरषा, सभा सोभंत पंडिता पुरषा। राजा सोभत दल प्रवाणी,सिधा सोभंत सुधि बुधि की वाणी॥६५॥ चिरला जाणंति • भेदांनिभद"विरला जाणंतिदोइ पष छेद। विरला जाणंति अकथ कहांणी, बिरला जाणंति सुधिबुधि की वाणीं ॥६६॥ उत्तरपंड जाइवा सुनिफल खाइबा, ब्रह्म अगनि पहरिवा चीरं । नीमर मरणे२० अंमृत२१ पीया२२ यू२६ मन हूवा थीर ॥ ६७ ॥ नगर उद्यान तथा तदागों से सुशोभित होता है। सभा की शोभा पंटित लोग है । राजा की शोभा उसको विश्वसनीय सेना है। इसी प्रकार सिद की शोमा प्राध्यात्मिक सत्ता की याद दिलानेवाली अथवा निर्मल शुद्ध पुदि युक्ति घाणी है ॥ ६५ ॥ प्रवाणी-प्रमाणी, प्रामाणिक (विश्वसनीय) नभेद के भेद को, अद्वैत के रहस्य को कोई विरले जानते हैं, द्वैत के पक्ष का निरसन किसी विरती को श्राता है। ब्रह्म की अकथनीय कथा को भी कोई विरले ही जानते हैं। मुधि चुधि की वाणी को कोई विरले जानते हैं। (देगो पिरती सयदी का अर्थ ) ॥ ६६ ॥ ( यरे या तपस्वी योग सिदि की शाशा से गेरुश्रा धारण कर उत्तरा- गंट ( यदरिकाश्रम श्रादि स्थानों) में जाकर मरने का जल और जंगलों के फंदमूत्र फन पर निर्वाह करते हैं। ) किन्तु गोरखनाथ जिस उत्तारखंड (ब्रम- रंध) में जाने का उपदेश करते हैं उसमें ब्रह्मग्नि का वस्त्र पहनने को, अमृत- निर में मरने वाला अमृत पीने की और शून्यफल (प्रारंध्र में मिलने १. (प) यही। २. (ग) में 'मूल नहीं है। ३. (क) (घ) वृछा । (ख) पा। ४. (4) पंटित पुरपा । ५. (ख) परवाणि । ६. (ख), (ग) गुली । ७. (स) गीधा; (ग) गिद्ध; (घ) गिध । ८. (ख) सिधि बुधि; (घ) मुमधुष । . (ग), (प) में नहीं । १०. (ग) जानंति. (घ) जापंत । ११. (ग) मेवांनभेद (प) मेदं । १२. (ग), (घ) जाग्यंत । १३. (घ) छेदं । १४. (ग) पानातः (4) जान्न । १५. (प) मुधबुध । १६. (ग) उतरिपंडि; (घ) जाट । १२. (ग), (१) नापया । १८. (ग) एन्याल (क) (प) मुनिफल १: () मरिया (घ) पायया । २०. (ग) १ (म!) हेरिवा। २१. (ग) २१. (ग) मृत; (घ) अमीरग। २२. (ग), (घ) पिवणां । १५. ()ो।