पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/५

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[गोरख-बानी - यामियों द्वारा उपदेशों व सिन्तिों के स्पष्टीकरण का निराला ढंग भी बराबर लक्षित होता रहता है । इसके सिवाय कबीर साहय श्रादि कई संत गोरख- नाथ प्रति न्यूनाधिक प्रद्धा प्रदर्शित करते हुए भी जान परते हैं, और उन्होंने नों पर इनके मायों शब्दों व वाश्यांशों तक को ज्यों-का त्यों अपनाया है। गुर गांगनाथ या उनके पंथ के प्रभावों से हिन्दी के प्रेममार्गी सुफी रुवि भी गर्ग नदी, और हम देते हैं कि जायसी ने 'पद्मावत' में राजा रतनसेन को मांगो काम्प देते घ मिहनगद को कायागद-सा वर्णन करते समय भी नाथ-पंथ हो मादशी या पतियों का सष्ट अनुसरण किया है, और एक प्रकार से उन्हीं ई जापार पर अपना परिणाम तक निकाला। गुरु गोरमनाय व नाय धियों की हिन्दी रचनाएँ अभी तक अधिकतर लिपि में ही पड़ी हुई हैं और उन्हें पढ़ने वा देसने तक का सुअवसर या कम Einों को मिल रहा है। बाद सिन्हा की कई प्राचीन हिन्दी वा अप- भारत को गनाएँ मुदूर सिम्यार य नेपाल से प्राप्त की जाकर टीका-टिप्पणियों के को न पो रूप में घुकी है, और महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री, २iमा, रास्टर पागनी व श्री राहुल सांकृत्यायन ने उनके पाठभेद वा Sri गूनाधिकाश साला है. शिन्त हिन्दी पुस्तकों की खोज पाकिमा पलता है कि नाय पंच विषयक ए तीसों ग्रंथ फुटकर वा मं में हुए हैं जिन्हें मनी नि संपादित करके, प्रकाशित करने मोना की गई। अमी जहाँ तक पता, केवल एक गारम्ब- TT सुटर पदों को नादौर के. राषटर मोहनसिंह ने भंगी 'अनुवाद

पासा गया है। गस्टर यस्वाल ने, प्रस्तुत संग्रह में,

I ARTIME मा मन्य महाग रचनाघों को भी संपादित कर ....... मामा मामालन का प्रयान दिया। Gramiमें मंगृटीन रगनापों के अंतर्गव हमें ना.पंथ के प्रायः Partinनगी दंगने को मिली है। गुरु: गारम्नाय का पंथ EGE मार मान घर पवा। टपके प्रया का इस पान में Thank for ER में पार की प्रास्यकता नहीं, RTir र नगर-ula, दीर व मोगर गृता एवं पुर Tra-m पनि। उसी पग-पति T, मी पटुन मी पापों प्राधि-