गोरख-बानी] २९ अरधंत कवल उरघंत' मध्ये प्राण पुरिस का बासा । द्वादस हंसा उलटि चलैगा, तब ही जोति प्रकासा ॥ ८१॥ पासण बैसिबा पवन निरोधिवा, थान-मांन सब धंधा। बदंत गोरखनाथ आतमा विचारत, ज्यू जल दीसै चंदा ॥२॥ गोरष बोलै मुरिणरे' अवधू पंचौं १० पसर १ निबारी। अपणी २ आत्मां13 आप बिचारी'४, तब सोवौ१५ पान पसारी॥३॥ बब नीचे के कमल में से उध्वं कमल में प्राण पुरुष का वास होने लगे तब प्राण वायु वहिर्गामी होने के बदले उजटकर आभ्यंतरगामी हो जायगी और क्योति का प्रकाश होगा ॥८॥ श्रासन बाँधकर बैठना, प्राणायाम के द्वारा वायु का निरोध करना कोई पद (यथा गुरु पद ) और तत्संबंधी मान सब धंधे हैं। श्रथवा स्थान विशेष का महत्व कि यहीं बैठकर अभ्यास से योगसिद्धि हो सकती है, सब धंधे हैं। (इनका निरपेक्ष महत्व नहीं है। ये केवल बाहरी साधन मात्र हैं । जो बातें प्राभ्यंतर ज्ञान को उत्पन्न करती हैं वे ही योग मार्ग में सब कुछ हैं)। गोरखनाथ कहते हैं कि श्रात्म तत्त्व का विचार करने से (सारा दृश्य- मान जगत वैसे ही परब्रह्म का प्रतिबिम्ब बान पड़ने लगता है) जिस प्रकार जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है ।।२।। गोरख करते हैं कि हे भवधूत, सुनो पंचतत्वों अथवा पंचज्ञानेंद्रियों के बहिःप्रसार का निवारण कर अपने प्रात्मा का स्वयं चिंतन करने से मनुष्य की सब चिंताएँ दूर हो जाती हैं। यह पाँच पसार कर, निश्चिंत हो कर सो सकता है ॥३॥ १. (ख) अरवत "उरधत । (घ) में 'उरघंतं के बाद भी 'कंवल १२. (ख) मधे; (घ) मधि । ३. (क) बासं...प्रकासं । (ख) में अंतिम दो चरण नहीं है। ४. (ग) (घ) ही, ५. (ख) आया न बसिबा । ६.(ख) बीचारंत; (ग),(घ) विचारिबा । ७.(ख), मंध । (ग), (घ) मध्ये । ८. (घ) कहै । ९. (ख) सुणोरे, (ग) सुगरैः (घ) सुणौरे । १०. (च) पांच; (ग) पाँचौ; (घ) पांचौं । ११. (ख) पसार; (ग) पसू । १२. (ख) आपणी; १३. (ख), (ग) आतमा । १४. (ग), (घ) बिचारिबा । १५. (क) सोवो, (ख), (ग) सोवै ।
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