पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/५३

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३० है [गोरख-बानी प्रसार न्यंद्रा वैरी काल, कैसे कर रखिबा गुरू का भंडार । असार तोड़ो, निंद्रा मोड़ौर, सिव सकती ले करि जोड़ी ॥ ४ ॥ नब जांनिवा' अनाहद का बंध, ना पडै त्रिभुवन नहीं पड़े कैध । रफत' की रेत अंग थें। न छूटै, जोगी कहता'हीरा १४न फूटै१५॥ सबद एक पूछिया कहौ गुरु दयालं, विरिधि 3 क्यू करि होइवा बाल ॥ फूल्या फून कली क्यू होई, पूछे कहै तो१८ गोरप सोई ॥८६॥ माहार वैरी है क्योंकि अति श्राहार से कई ख़रावियों होती है जिनमें से नींद का जोर करना एक है। देखो ऊपर ३३ वीं और ३४वीं सदी) और निद्रा । (ये गुर के भंडार महतत्व की चोरी करते हैं, उसकी अनुभूति नहीं होने देते) गुर के भंडार की रक्षा कैसे की जाय ? भोजन को तो कम करो निद्रा को मोड़ो मर्याद अाने न दो) और शिव (ब्रह्मतत्व) और शक्ति (योगिनी, रनिनी तर ) को एक में मिला नो ( यही उसका उपाय है ॥ ८४ ॥ अनाहत प्राप्त कर लिया गया है, याँध लिया गया है, यह तभी समझना पाहिए जय प्रैलोक्य में योगी के लिए पापा न हो, और उसका शरीर-पात गहो; रक्त का सार रेतस् (शुक्र) शरीर से स्खलित न हो, और जोगी पाता है कि (श्वेत प्रदानुभव का ) होरा नष्ट न हो अर्थात् साक्षात् ब्रह्मा- गुमय हो जाय n८५॥ हम मापसे एक रागद पसते हैं, हे दयालु गुर, उसका उत्तर दीजिए । वृद्ध १. (प) प्रहार फेरी निंद्रा कान । २. (ग) वेरी। ३. (ख) फसि करि, (), (८) । ४. (म) तोदो, मोटो, जोहो (ग) तोही, मोही, जोगी। ५. (१), (प)न्यद्रा । ६. (ग) दिटि फरि; (ग), (प) उनमनि । ७. (a), (71) जाजना; (क) शानया; (ग) में इसके पहले और (प) में यागे 'श्रवधू! २८. (1) पाला जप नहीं है दृरारे 'नहीं' के स्थान पर केवल 'ना है। (प)- न पर, (ग) नदी पटै नदी परे । ६. (प) त्रिभवण; (घ) मिन... (1) मगर (म) रस । ११ (ग) परे । (ग) प्राग ये; (ग) अंग प; (५) गरे । १२. (५) गो जोगी। १३. (A) कहत, (घ) कहतां । १४. (1) 1(), ()ोपा । १५.() । १६. (क) गुरु कदी। १७. (6) 4 (1), () fuो (पे-म): (५) वृध में । १८. (प) यो; (न), -