पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/९३

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W [गोरख-बानी गिगनि मंडल मैं गाय बियाई कागद दही जमाया। छाछि छांणि पिंडता पीवी सिधां माषण षाया ॥१९॥ गूदड़ी जुग च्यारि ते आई । गूदड़ी सिध साधिका चलाई। गूदड़ी मैं अतीत का बासा। भणंत 'गोरषनाथ मछिंद्र का दासा १६७॥ असाधकंद्रप बिरला साधत कोई ।सुर नर गण गंध्रप ब्याप्या११ बालि सुग्रीव भाई। ब्रह्मा देवता कंद्रप व्याप्या। यंद्र सहस्र१२ भग पाई ॥ १९८ ।। गगन मंडल में अनुभूति के शिखर पर पहुँच कर सिद्धों ने परमानुभूति प्राप्त की (गाय वियाई), उसी का सार (दूध ) खींच कर उन्होंने उसे उपनिषदादिक ग्रंथों (कागज ) में स्थिर रूप दे दिया (दही जमाया।) पंडितों ने इस दही को छान कर केवल छाछ भर ग्रहण की है, (वह शब्दों में ही फंसे रह गये ), किन्तु सिद्धों ने छाछ को छोड़कर मक्खन को ग्रहण किया, (शब्दों को छोड़कर.ज्ञान को ग्रहण किया)॥ १६६ ॥ जोगी लोग गुदवी धारण करते हैं, उसी की महिमा में यह सवदी कही गयी है। अतीत, जो परे है, पहुँच के बाहर है, परमात्मा । अतीत सिद्ध योगी को भी कहते हैं जो स्वयं परमात्मा हो गया है। अतिथि से भी उसकी म्युत्पत्ति की जा सकती है। असाध, असाभ्य, जो वश में नहीं होता। सुग्रीव ने बालि को मरा हुधा समझ कर उसकी स्त्री को रख लिया था। इस पर दोनों भाइयों में लदाई हुई । ब्रह्मा ने सरस्वती से भोग किया । इन्द्र ने गौतम ऋषि की स्त्री श्रहल्या से छल किया । गौतम ऋपि के शाप से उसके शरीर पर सहस्र भग हो गये ॥ १९८॥ १. (ख) गउ, (ग) गाई । २. (ख) कागदी, (घ) कागद । ३. (ख) मथे मयि, (ग) छाणि छाणि । ४. (ख) पाई, (ग) पाई । ५. (ग) पंडिता, (घ) पिंडतां, (ख) पंडीता । ६. (ख) माषण सीधो । ७. (ख) च्यारि जुगतै, (ग) जुग चारित । ८. सीधौ माधिकौ, (ग) सिंघ सधको। ६. (क) कयंत । १०. (ग) असापि । ११. (ग) में 'बालि न्याया' नहीं । १२. (ग) इंद्र सहस।