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गोरा

गोरा विकसित हो रही है । मुसकुराते ही उसका चेहरा कमल सा खिल उठता. है । उस मुखके सौन्दर्य की उपमा चन्द्रमासे , या अमलसे ! उसको वह चिकुर राशि उसके वे दोनों कटीले नेत्र ! उसकी वह सीधी चितवन चित्त को चुराये लेती है। मानों वह मधुर मूर्ति मेरी आँखोंके सामने खड़ी हैं: मानो वह मुझसे बातें कर रही है।" विनय अपने जीवनको और युवत्व को धन्य मान रहा है। इस नूतन आनन्दसे उसका हृदय रह रहकर फूल उठता है । संसार के अधिकाँश लोग जिसे न देखकर ही जीवन को बिता:- डालते हैं । उसे विनय इस तरह आँखाके सामने मूत्तिमान् देख सकता है इससे बढ़कर आश्चर्य की बात और क्या हो सकती है। किन्तु यह कैसा पागलपन हैं ! कैसा अन्याय है ? जो हो पर यह अत्र: किसी तरह मनमें रोका नहीं जा सकता है । इस प्रेम प्रवाहका यदि कोई : किनारा बता दे तो अच्छा है। नहीं तो यदि किसीने उसमें ढकेल दिया, किसी तरह उसके भीतर धंस पड़ा तो फिर बाहर निकलने का उपाय क्या है ! कठिन तो यह कि उसमें से बाहर होने की इच्छा भी नहीं होती। इतने दिनों के समस्त संस्कार और सारी मर्यादाको खो देना ही मानो जीवन का सार्थक परिणाम जान पड़ता है । गोरा चुपचाप सुनने लगा । इस छत पर ऐसे सन्नाटेकी चांदनी रातमें और कितने ही दिन इन दोनों में कितनी ही बातें हो गई है। साहित्य,. काव्यालाप और लोक चरित्र की कितनी ही बालोचना हुई है; समाज की कितनी ही आलोचना और भविष्यत जीवन यात्राके सम्बन्धमें कितने ही संकल्प हुए हैं; परन्तु ऐसी बात इसके पूर्व किसी दिन न हुई थी। मनुष्य हृदयका ऐसा एक सत्य पदार्थ ऐसा षक प्रबल प्रकाश इस प्रकार. गोराके सामने कभी नहीं पड़ा था। इन व्यापारियोंको वह कविका चमत्कार समझकर इतने दिन तक सम्पूर्ण रूपसे उनकी उपेक्षा करता आया है। किन्तु आज इन्हें प्रत्यक्ष देख वह किसी तरह अस्वीकार न कर सका। इतना ही नहीं, इसके प्रबल वेगने उसके मनको चंचल कर दिया। उसके.