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गोरा

गोरा ११० ] बाबूके ही साथ सुचरिताका विवाह होना जब सभीने निश्चय समझ लिया तब सुचरिताने भी मन ही मन उसमें योग दिया था। सुचरिताको एक विशेष इच्छा यह थी कि हारान बाबूने ब्राह्म समाजके जिस हित-साधनके लिए अपना जीवन उत्सर्ग किया है उनके सभी कर्य में मदद दे संकूगी । विवाहकी यह कल्पना उसके लिए भय, आवेग और कठिन उत्तरदायित्व ज्ञान द्वारा बने हुए पत्थरके दुर्गकी भांति अभेद्य मालूम होने लगी! वह केवल सुखसे रहनेका किला नहीं हैं, वह तो युद्ध करनेके ही. लिये रचा गया है । उस किले पर अधिकार करना सहज नहीं है। इसी अवस्थामें यदि विवाह हो जाता तो किसी तरह कन्यापक्ष वाले इस ब्याहको सौभाग्य ही मानते ! किन्तु हारान बाबू अपने उत्सर्ग किये. हुये महान् जीवनकी जिम्मेदारीको इतनी ऊँची दृष्टिसे देखते थे कि केवल प्रेमसे आकृष्ट होकर व्याह करना उन्होंने अपने लिए अयोग्य समझा। इस विवाह से ब्राह्म समाजको कहाँ तक लाभ पहुँचेगा, यह भली भांति बिना सोचे इस कार्यमें प्रवृत्ति न हो सके इस कारण प्रेम की दृष्टिसे नहीं बल्कि ब्रह्म समाजकी दृष्टिसे सुचरिता की परीक्षा करने लगे। इस तरहसे परीक्षा करने में परीक्षा देनी भी पड़ती है। हारान बाबू परेश बाबूके घरमें सुपरचित हो उठे । यहाँ तक कि उन्हें उनके घरके लोग जिस पानू बाबू के नामसे पुकारते थे, उनके उस नामका प्रचार इस परिवारमें भी हो गया । अब उन्हें केवल अङ्ग्रेजीके भण्डार तत्व क्षान के आधार और ब्राह्मसमाज के मंगलके अवतार के रूपसे देखना असम्भव हो गया। वह भी मनुष्य ही हैं, उनका यही परिचय सब प्रकार के परिचयोंसे बढ़ कर निकटवतों और सहज हो उठा । तब वह केवल श्रद्धा और सम्मानके अधि- कारी न होकर अच्छे और बुरे लगने के भाव से वशक्ती हो गये। आश्चर्य की बात तो यह है कि हागन बाबूके जिस मावने पहले दूरसे सुचरिता के मन में भकिका संचार किया था; और उसे अपनी ओर अधिकाधिक आकृष्ट करना शुरू किया था; बही भाव घनिष्टता और. निकटवर्ती होने पर उसे चोट पहुँचाने लगा। ब्राह्मसमाजके भीतर जो कुक,