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गोरा [ १०६ के साथ उसको गाढ़ी मैत्री हुई। सुचरिता तबसे परेश बापू को अपने पिता के समान मानने लगी। रामशरण अचानक मर गया। उसके पास जो कुछ जमापूजी थी, वह अपने बेटे और बेटीको बाँट देने का भार परेश बाबूको दे गया था। तबसे सतीश और सुचरिता दोनों परेश बाबू के घर रहने लगे। पाठक पहले ही जान चुके हैं हारानचन्द्र उर्फ पानू बापू बड़े उत्साही बाल थे। ब्राह्म समाजके सभी उनके हाथमें थे। वह रात्रि पाटशाला के शिक्षक, समाचार पत्र सम्पादक और स्त्री विद्यालयके मन्त्री थे। किसी मी काममें उनकी शिथिलता नहीं पाई जाती थी। सभी के मनमें वही आशा थी कि यही युवक एक दिन ब्राह्म समाज का ऊँचा आसन ग्रहण करेगा । विशेष कर अँगरेजी माषामें पानू बाबू के अधिकार और दर्शन थानमें उनकी पारदर्षिताके सम्बन्धमें उनका यश विद्यालयके छात्रोंके द्वारा ब्राह्म समाजके बाहर भी दूर दूर तक फैल गया था। इन सब गुणों के कारण अन्यान्य ब्राह्मण की भांति सुचरिता भी हारान बालू पर विशेष श्रद्धा रखती थी । ढाकेले कलकत्ते आते समय हरान बाबूके साथ परिचय होने के लिए उसके मनमें विशेष उत्सुकता भी उत्पन्न हुई थी। अन्तमें प्रसिद्ध हारान बाबूके साथ केवल परिचय होकर ही नहीं रहा किन्तु थोड़े ही दिनों में, सुचरिताके प्रति अपने हृदयका अनुराग दिखलाने में हारान बाबूने कुछ संकोच न किया। स्पष्ट रूपले उन्होंने तुचरिताके निकट प्रेम भले ही प्रकट न किया हो किन्तु सुचरिता की सब तरह की कमियोंको पूर्ण करने में, उसकी त्रुटियोंके संशोधनमें, उसके उत्साहको बढ़ाने में. उसकी उन्नति में उन्होंने ऐसा मन लगाया ऐसा ध्यान दिया--कि यह बात सबको स्पष्ट विदित हो गई कि सुचरिताको विशेष रूपसे अपने लायक सहधर्मिणी या जीवनसंगिनी बनाने की उनकी प्रबल इच्छा है। सुचरिताने जब जाना कि मैंने प्रसिद्ध हारान बाबूके मन पर विजय प्रासकी है तब वह मनमें कुछ-कुछ मक्तिके साथ गर्वका अनुभव करने लगी। लड़की की बालेबोर से कोई प्रस्ताव उपस्थित न होने पर भी हारान --