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गोरा

गोरा [ ११३ दिन कहेंगे, मैं इस कन्या को ग्रहण करने के लिए प्रस्तुत हूँ, उसी दिन वह इस विवाह रूपी महत्कार्य को स्वीकार कर लेगी। इसी तरह यह प्रसंग चला आ रहा था। इसी बीच में उस दिन, गोराको उपलक्ष करके हारान बाबूके साथ सुचरिताकी दो चार गर्मागर्मी की बातें होगई थीं उनको सुन सुन कर ही परेश बाबूसे मनमें संशय उपस्थित हुअा कि शायद सुचरिता हारान वाबू पर यथेष्ठ श्रद्धा नहीं रखती शायद दोनों की प्रकृतिमें परस्पर मेल न खाने का कोई कारण मौजूद है। इसी कारण वरदासुन्दरी जय व्याहके लिए ताकीद कर रही थी, उस समय परेश बाबू पहलेकी तरह उसका अनुमोदन नहीं कर सके। उसी दिन वरदानुन्दरीने सुचरिताको एकान्त में सूनी जगह बुला कर कहा—तुमने तो अपने बाबू जीको चिन्लामें डाल दिया सूची: यह सुनकर सुचरिता चौंक उथे । वह अगर भूलकर धोखे से भी परेश वाबूकी चिन्ताका कारण हो उठे, तो उसके लिये इससे बढ़कर कष्टका और कोई कारण हो ही नहीं सकता। उसका चेहरा उतर गया। उसने सटपटा कर पूछा-क्यों मैंने क्या किया? वरदासुन्दरी -क्या जाने वच्ची उन्हें शायद किसी तरह जान पड़ाहै कि तुम पानू वाबू को पसन्द नहीं करती हो ब्राह्मसमाज के सभी लोग जानते हैं कि पान बाबू के साथ तुम्सारा व्याह एक तरहसे पक्का है। ऐसी अगरहालत में तुम-- सुचरिताने व्यग्र हो कर कहा-कहाँ, मां मैंने तो इस सम्बन्ध में कभी किसीसे कोई बात ही नहीं कही-सुनी फिर यह कैसी बात है। सुचरिताको विस्मित होनेका कारण था ? वह हारान बाबूके व्यवहारसे बराबर खीझती आती थी सही, किन्तु विवाहके प्रस्तावके विरुद्ध उसने किसी दिन मनमें भी कुछ नहीं सोचा ! कारण, वह यही जानती थी कि सुख दुखकी दृष्टिसे यह विवाह विचारणीय ही नहीं है। तब उसे खयाल आया कि उस दिन परेश बाबूके सामने ही उसने हारान बाबूके प्रति विराग प्रकट किया था। उसीसे परेश बाबूके चिन्तित फ० नं०८ ।