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गोरा

गोरा [१२१ का इन्तजार न कर झट बन्द दराजको जोरसे खींचा। ताला टूट जानेसे दराज बाहर निकल आया । दराज खुलते ही उसमें रक्खे हुए परेश बाबूके घरके सब लोगोंके पूरे चित्र पर सबसे पहले उसकी नजर गई। यह चित्र विनयने अपने छोटे मित्र सतीश के द्वारा प्राप्त किया था । रुपया लेकर गोराने उस बूढ़े मुसलमानको दे बिदा किया, किन्नु फोटोके सम्बन्ध में कुछ न कहा। गोरके इस विषयमें चुप रहते देख विनयने भी उसका कोई जिक्र न किया। चित्रके सम्बन्धमें दो-चार बातें हो जाती तो विनयका मन हलका हो जाता। गोरा एकाएक बोल उठा-अच्छा, मैं चलता हूं। विनय--वाह ! तुम अकेले जाओगे! माने मुभको तुम्हारे ही यहाँ खानेको बुलाया है, इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ। दोनों घरसे बाहर हुए । रास्तेमें गोरा अबकी बार कुछ न वोला । दराजके चित्रने उसको स्मरण करा दिया कि विनयके सनकी एक धारा ऐसे गुप्त मार्गसे बह रही है जिसके साथ गोरा के जीवनका कोई सम्पर्क नहीं है। घरके पास आते ही उन्होंने देखा कि महिम फाटक के पास खड़े-खड़े रास्तेकी ओर देख रहे हैं । दोनों मित्रोंको एक साथ देख उन्होंने कहा- क्या मामला है ? कल तो तुम दोनों सारी रात जागते रहे ! मैं सोच रहा था, शायद तुम दोनों सड़क के किनारे कहीं सो गये होंगे। दिन तो बहुत चढ़ आया । जानो विनय बाबू तुम नहा लो। विनयको इस तरह ताकीद करके नहाने के लिए भेज कर महिम गोरासे कहने लगे, देखो गोरा तुमसे जो बात कही थी, उस पर तनिक विचार करो । विनयके ऊपर अगर तुमको यह सन्देह है कि वह हिन्दू धर्मके आचार-विचारको नहीं मानता, उनके विरुद्ध चलताहै तो तुम्ही बतायो, आजकल कट्टर हिन्दू पात्र मिल कहाँ सकता है ? केवल कट्टर हिन्दू होनेसे ही तो कुछ होगा नहीं, लड़का सुशील और पढ़ा लिखा भी तो होना