पृष्ठ:गोरा.pdf/१४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४२ ]
गोरा

विनय-मेरे वंशमें अगहन का इर कोई न मिटा सकेगा। और लंग मान भी सकते हैं; परन्तु मेरी चाची किसी तरह राजी न होगी।

इस तरह उस दिन विनयने किसी ढंग से विवाह की वातको टाल दिया।

यिनयकी वातांक रङ्ग ढङ्गसे गोरा समझ गया कि इसके मनमें कुछ भावान्तर उपस्थित हुआ है । गोराको यह भी पता लग गया था कि विनय अव पहले की अपेक्षा परेश बाबूके घर अधिक जाने आने लगा है। उस पर भी आज इस विवाहके प्रस्तावमें फन्दा काटकर उसके निकल जाने की चेष्टा देख गोराके भनमें सन्देह उत्पन्न हुअा।

गोराने कहा--विनत्र, एक बार जब तुम भाई साहबको बचन दे दे चुके हो तब क्यों इनको दुविधा में डालकर नाहक कष्ट दे रहे हो ?

विनय सहसा असहिष्णु होकर बोला--मैंने बचन दिया है- जबरदती नुझसे बचन ले लिया गया है ?

विनयका यह प्राकत्मिक विद्रोह नाव देखकर गोरा विस्मित हुआ। उसने खड़े होकर कहा -किसने तुमसे जबरदस्ती वचन कहलाया है।

विनय-तुमने।

गोरा--मेरी तुम्हारे साथ इस सम्बन्धमें दो एक वातासे अधिक बात- चीत नहीं हुई । इसीको तुम वचन कहलाना कहते हो !

वस्तुतः विनय के पास कोई विशेष प्रमाण न था। गौरा जो कहता है वही सत्य है । बात चीत बहुत थोड़ी हुई थी और उसमें कोई ऐसे अाग्रहका भाव न था जिसे जबर्दस्ती कहा जाय । तो यह बात सच है कि गोराने विनयके पेट से उसकी सम्मति मानों लूटकर बाहर निकाल ली थी ? जिस मुकदमेका बाहरी सबूत कम है उस मुकदमे में मनुष्यको क्षोभ भी कुछ अधिक होता है । इसीसे विनयने कुछ लड़खड़ाती हुई जबान से कहा--जबरदस्ती कहलाने के लिये वहुत बातांकी जरूरत नहीं होती।

गोराने कुर्सी से खड़े होकर कहा-तो, अपनी बात फेर ली ! यह बात इतनी वेशकीमती नहीं कि मैं इसे तुमसे माँगकर या जबरदस्ती लूँ।