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गोरा

२६ ] गोरा मान लिया है, इस लिये उस पर क्रोध करना भी अनुचित होगा। इस घटना से ललिताको अपने ऊपर घृणा और लज्जा हुई जिसके स्वभा- वतः इतनी बड़ी होनेका कोई कारण न था । और दिन उसका मन जब किसी तरह अस्थिर होता था तब वह सुचरिताके पास जाती थी। कर अाज नहीं गई और क्यों उसका हृदय विवश हो गया तथा उसकी आँखों से इस प्रकार सहसा आँसू गिरने लगे, इसका ठीक ठीक कारण वह खुद न समझ सकी। दूसरे दिन सवेरे सुधीरने लावण्यकों एक गुलदस्ता लाकर दिया था। उस गुलदस्ते में एक डाल में,दो अधखिले गुलावके फूल थे । ललिताने उस गुलदस्तेमें से उन्हें खोलकर रख लिया। लावण्यने कहा-क्या किया ? ललिताने कहा-नालदलेमें अनेक फूल पत्तियोंके बीच अच्छे फूलको बँधा देख कष्ट होता है; इस तरह एक ही रस्सी में सव भली बुरी चीजोंको एक श्रेणीम जबरदली वाँधना मूर्खता है। यह कह कर ललिताने सब फूलांको खोलकर उन्हें घरमें इधर उधर -~-जहाँ जो रखने योग्य था-रख दिया; सिर्फ गुलाबके दोनों फूलों को लेकर वह चली गई। सतीशने उसके बाथमें फूल देखकर कहा-~-वहिन ये मूल कहां मिले। ललिताने उसका उत्तर न देकर पूछा--अाज तू अपने दोस्त के घर न जायगा? विनयकी और अभी तक सतीश का ध्यान न था किन्तु उसके महसे विनयका नाम सुनते ही वह उछलकर बोला- हाँ, जाऊँगा क्यों नहीं! - बस, वह जाने के लिए प्रानुर हो उठा। ललिताने उसका हाथ पकड़ कर पूछा-वहाँ जाकर तू क्या करता है ? सतीशने संक्षेपमें कहा---गपशप । ललिता-उन्होंने तुझको इतने चित्र दिये हैं, तू उन्हें कुछ क्या नहीं देता! विनय सतीशके लिए अँगरेजी अखबारों और विज्ञापनों से अनेक "