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गोरा

१६०] गोरा अपने इस दुक्धामें पड़े हुए जीवन को किसी एक जगह चूड़ान्त भावसे समर्पण कर सकनेसे ही उसकी जान बचे। इसीसे उसने इस तरह तत्काल निश्चय भावसे अपनी स्वीकृति दे दी कि परेश बाबूका सारा सन्देह दूर हो गया । उन्होंने विवाहके पहले प्रतिज्ञाबद्ध होना कर्तब्ध है कि नहीं, इस विषयको अच्छी तरह सोच विचार लेनेके लिए सुचरितासे अनुरोध किया, किन्तु फिर भी सुचरिताने इस प्रस्तावमें कुछ भी आपत्ति नहीं की। निश्चय हुआ कि ब्राउनलो साहवके निमन्त्रणसे हो आकर एक विशेष दिनमें सबको बुलाकर भावी दम्पत्ति का सम्बन्ध पक्का किया जायगा । सुचरिताको क्षण भरके लिए जान पड़ा कि उसका मन जेसे राहूके ग्रास से मुक्त हो गया। उसने मनमें पक्का कर लिया कि हारान बाबूसे व्याह करके ब्राह्मसमाज के काम में सम्मिलित होने के लिए वह अपने मनको कठोर भावसे प्रस्तुत करेगी । हारान बाबूसे ही वह रोज थोड़ा थोड़ा धर्मतत्व सम्बन्धी अंगरेजी पुस्तकें पढ़कर उनकी आज्ञा के अनुसार चलेगी यही उसने इरादा कर लिया। उसके लिए जो दुरूह है वहां तक कि अप्रिय है, उसीको ग्रहण करनेकी प्रतिज्ञा करके उसने मनमें एक तरह की स्कूर्ति या स्फूर्तिका अनुभव किया । हारान वावू द्वारा संपादित अंगरेजी पत्रको कुछ दिनसे सुचरिताने नहीं पढ़ा था । आज वह पत्र छपते ही सुचरिताको डाकसे मिला । जान पड़ता है, हारान बाबू ने खास करके वह अंक सुचरिता के पास भेज दिया था। तुचरिता उस अखबारको अपनी कोठरी में ले जाकर स्थिर होकर बैठकर, परम कर्त्तव्यकी तरह, शुरूसे पढ़ने लगी। श्रद्धापूर्ण चित्तसे अपनेको छात्रकी तरह जान कर वह उस पत्रसे उपदेश ग्रहण करने लगी। नौका पालके जोरसे चलते एकाएक पहाड़ से टकरा कर उलट गई । इस संख्या में 'पुराने स्खयालात के पागल' नामक एक लेख था। उसमें उन लोगों पर आक्रमण किया गया था जो वर्तमान कालमें रह कर भी पुराने जमाने की ओर रूख किये हुए है ? यह बात नहीं कि उस लेख