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गोरा

गोरा [ २०१ वर्णनसे गांवकी प्रजाको अपराधी ठहरा कर उन पर खूब बिगड़ा । ये सव लोग बलवान्के विरुद्ध सिर उठाना चाहते हैं, यह मूर्ख मुसलमानोंकी स्पर्धा और जड़ता नहीं तो और क्या है ? उचित शासनके द्वारा इन लोगों की उद्दण्डता दूर करने ही में कुशल है। इसमें रमापति को कुछ भी सन्देह न था। ऐसे कम्बख्न अभागोंके ऊपर पुलिसका उपद्रव होता ही रहता है। ये गँवार लोग ही प्रधान दोषी हैं ये अपने दोषका ही उचित फल पा रहे हैं, उसकी ऐसी ही धारणा थी कि दे मालिकके साथ मेल- मिलाप कर लेते, फसाद क्यों खड़ा करने लगे ? अब पुलिसके आगे वह चीरता कहां गई ? वास्तव में रमापतिकी आन्तरिक सहानुभूति नीलकोटी के साहब के ही साथ थी। दोपहरकी कड़कड़ाती धूपमें तपो हुई. बालूके ऊपर चलते-चलते थककर गोरा एक भी बात न बोला। आखिर एक बारके भीतर से जब कुछ दूरी पर कचहरीका मकान देख पड़ा तब गोरा ने रमापति से कहा- तुम वहां जाकर खायो पीओ। मैं उसी नाईके घर जाता हूं रमापति- यह क्यों ? क्या आप भोजन नहीं करेंगे? तहसीलदार के यहाँ खा पीकर जाइयेगा। गोरा-अभी अपना काम करूंगा। तुम खा पीकर कलकने चले जाना.। इस अल्लापुर में शायद मुझे कुछ दिन रहना पड़ेगा। तुम्हें यहाँका रहना वरदाश्त न होगा। रमापति के रोंगटे खड़े हो गये। गोराके सदृश धामष्ट हिन्दूने इस मलेच्छके घर में रहने की बात कैसे मुंह से निकाली; यह सोचकर वह अवाक हो रहा । गोराने क्या खाना पीना छोड़कर उपवास व्रतका संकल्प किया है, वह यही सोचने लगा। किन्तु वह सोचनेका समय न था। एक एक घड़ी उसके लिए एक एक कल्पके बराबर बीतती जा रही थी। मोराका साथ छोड़कर कलकत्ते जानेके लिए उसको अधिक निहोरा करना न पड़ा। कुछ सी देर में रमापतिने देखा कि गोरा विस्तृत आया छोड़कर