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गोरा

गोरा [२३३ चित्तमें चेतना इस तरह जाग्रत हो उठी कि सारे जगत्के अन्तर्निहित चैतन्य के साथ श्राज जैने एकदम उनके अंग से अंग भिड़ गया। मर कलकत्ते में आया । विनय ने घाटमें एक गाड़ी किरायेकी कर के भीतर ललिताको विठलाया, और आप ऊपर कोच-बक्समें गाड़ीवानके पास बैठ गया । इस दिन के समय कलकत्तेकी सड़क पर गाड़ी करके चलते- चलते क्यों ललिताके मनमे उलटी हवा चलने लगी, यह कौन बता सकता है ! इस संकटके समय बिनय जो लीमरमें था, ललिता जो विनयके साथ इस तरह बड़ित हो पड़ी है, बिनय जो अभिभावककी तरह उसे गाड़ी पर बिठा कर घर लिए जा रहा है, वह सब उसे पीड़ित करने लगा। घटनावश विनयने जो उसके ऊपर एक कर्तृत्वका अधिकार पाया है, वही उसे असत्य हो उठा । क्यों ऐसा हुआ। रातको वह संगीत दिनके कर्म-क्षेत्रके सामने पाकर क्या ऐसे कठोर सुरमें थम गया । इसीसे द्वारके पास आकर विनयने जब संकोचके साथ पूछा-मैं तो, फिर जाऊँ ? अब ललिताकी दीक और भी बढ़ उड़। उसने सोचा कि विनय बाबू सनते हैं, उन्हें साथ लेकर पिताके पाल उपस्थित होने में कुण्ठित होती हूँ । इत्त सम्बन्ध में उसके ननमें संकोचका लेश भी नहीं है, यही जोर के साथ प्रमाणित करने और विताके निकट सारी घटनाको संपूर्ण भाव से उपस्थित करने के लिए उसने विनयको द्वारके निकट ही से अप- राधी की तरह विदा कर देना नहीं चाहा । विनयके साथ सम्बन्धको वह पहले ही की तरह साफ कर बालना चाहती है--बीच में कोई कुन्टा कोई मोहकी जडिमा रख कर वह अपनेकों विनयके निकट छोटा या हीन करना नहीं चाहती।