पृष्ठ:गोरा.pdf/२३४

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[३१] विनय और ललिताको देखते ही सतीश न मालूम कहांसे दौड़कर उनके पास आया और उन दोनोंके बीच खड़ा हो दोनोंके हाथ पकड़कर बोला-कहो, बड़ी बहन कहाँ है ? क्या वह नहीं आई ? विनयने पाकेटमें हाथ डालकर और विस्मय भरी दृष्टिसे चारों ओर देवकर कहा--बड़ी बहन ! प्रोफ, थी तो साथ ही में न मालूम कहाँ खो गई। सतीशने विनयको धक्का देकर कहा - नहीं, यह बात कभी नहीं है। कहो ललिता वहन नुम कहो! बड़ी बहन कल आवेगी। यह कर ललिता परेश वाबूके कमरेको ओर चली। सतीशने ललिता और विनयका हाथ पकड़ और अपनी ओर खींच- कर कहा-हमारे घर में कौन आया है, देखो चलो। तिमंजिले की छतके कोने पर जो एक छोटी सी कोठरी है, उसके दक्खिन और धूप और वर्षा के निवारणार्थ एक टीनका छोटासा श्रावरण दे दिया गया है। सतीशके पीछे पीछे इन दोनोंने जाकर देखा कि एक छोटा सा आसन बिछाकर, उस छपरीके नीचे, एक अधेड़ स्त्री चश्मा लगाये रामायण पढ़ रही है। उसकी उम्र करीब पैंतालिस वर्षकी होगी। सिरके आगेके बाल कुल उड़े हुएसे जान पड़ते हैं और कोई कोई बाल सफेद भी हो चला है । किन्तु गोरा चेहरा अब भी, पके फलकी तरह ज्योका त्यों देख पड़ता है। दोनों भौंहोंके बीच एक काला दाग है। न हाथमें चूड़ी है और बदनमें कोई गहना। विधवा सी दीखती हैं। पहले ललिता पर दृष्टि पड़ते ही उसने झट चश्मा खोल पुस्तकको एक शोर रख बड़ी उत्सुकताके साथ उसके मुँहकी ओर देखा । इसी क्षण २३४