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1 गोरा [२४६ ललिताकी ऐसी उद्दण्डता-भरी वात सुन हारान बाबू पहले तो हत- बुद्धि हो रहे किन्तु फिर उन्होंने इसका खूब कड़ा जवाब देना चाहा। उन्हें कुछ बोलते देख ललिताने अपने को रोककर कहा-हम लोग आपकी श्रेष्ठताका बराबर लिहाज करती आती हैं किन्तु श्राप यदि पिता जी से बढ़कर अपनेको मान्य समझते है और उनकी अपेक्षा अपना आदर बढ़ाना चाहते हैं तो इस घरमें आपका आदर कोई न करेगा। हारानबाबू अॉखें लाल कर बोल उठे-ललिता तुम बहुत बढ़कर बाते ललिताने उनकी बातकर कहा—शान्त रहिए । आपकी बातें हमने बहुत सुनी हैं। आज मेरी बात सुनिए। अगर आपको मेरी बात पर विश्वास न हो ती श्राप सुचरिता बहिन से पूछ लीजिए । आप अपनेको जितना बड़ा समझते हैं, उसकी अपेक्षा हमारे पिताजी बहुत बड़े हैं। आपको जो कुछ उपदेश मुझे देना है दे डालिए । हारान बाबुका चेहरा उतर गया। उन्होंने कुरसीसे उठकर कहां सुचरिता? नुचरिताने किताबके पन्ने की ओरसे नजर उटाकर उनकी ओर देखा । हारान बाबूने कहा-देखो, ललिता तुम मेरे साथ अभद्रताका व्यवहार कर रही हो । क्या तुम्हें मेरा अपमान करना उचित है ! तुचरिताने गम्भीर स्वरमें कहा-वह आपका अपमान करना नहीं चाहती। उसके कहने का मतलब यह है कि पार पिताजीको सम्मान की दृष्टिसे देखा करें। उनसे बढ़कर सम्मानके योग्य और कोई है यह हम लोग नहीं जानतीं। हारान बाबुकी चेष्टामे जान पड़ा कि वह अभी कुरसी छोड़कर चलें जायंगे। किन्तु वह दो-एक बार उठनेका लक्षण दिखाकर भी न उठे, मुँह लटका कर बैठे रहे। इस घरमें उनकी प्रतिष्टा धीरे-धीरे नष्ट हो रही थी, इस बात को वह जितना सोचते थे, उसना ही वह यहाँ अपने प्रासनको हद जमाकर बैठने के लिये विशेष चेष्टा करते थे । वे इस बातको सोचकर FA