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२५० ]
गोरा

२५० ] गोरा अपनी अप्रतिष्टाको भूल जाते थे कि पुरानी वस्तुको जितना ही जोर लगाकर दबा रखना चाहते हैं वह उतनी ही खण्ड खण्ड होकर टूटती है। हारान बाबू मुँह लटकाये बैठे हैं । यह देख, ललिता वहाँ से उठ सुचरिता के पास जा बैटी । और उसके साथ मीठे स्वरमें इस प्रकार बातें करने लगी मानों हारान बाबूके साथ कुछ छेड़छाड़ ही नहीं हुई है । इसी समय सतीशने घरके भीतर प्रवेश कर सुचरिता का हाथ खींच- कर कहा-बड़ी बहिन, इधर अायो । सुचरिता ने कहा-कहाँ जाना है ? सतीश-चलो, तुमको एक चीज दिखाऊँगा ! ललिता बहिन, तुमने कह तो नहीं दिया? ललिता--नहीं। मौसीके आने की बात ललिता मुत्ररितासे न कहे, ऐसा ही ललिताका निश्चय सतीशके साथ हुअा था। इसीसे ललिताने अपनी प्रतिज्ञाका स्मरण कर सुचरितासे कुछ नहीं कहा। परेश चाबूको स्नान करते आते देख सतीश अपनी दोनों बहनोंको वहाँ मे खींचकर ले गया । हारान बाबूने परेश वावृत्ते कहा-सुचरिताके सम्बन्ध में जो प्रस्ताव पक्का हो गया है उसमें अब विलम्ब करना ठीक नहीं । मैं चाहता हूँ कि अगले रविवारको यह काम हो जाय । परेश-मुझे कोई उन्न नहीं। यह सुचरिताकी इच्छा पर निर्भर है। हारान-उसकी इच्छा तो पहले ही ज्ञात हो चुकी है। परेश बाबूने कहा-~-अच्छा, तो आपकी ही बात रही। -:.:-