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I- गोरा [२७६ कोई सम्बन्ध ही न हो ! मैंने इतने दिन इसकी वेटीकी तरह पाला-पोसा सो कुछ नहीं। इतने दिन मौसी कहाँ थी, बचपनसे ही मैंने ऐसे सिम्बा पढ़ाकर होशियार किया है। किन्तु आज मौसीके पीछे एकदम दुल है दिन रात उसीके पास बैठी रहती है। मैं उन ( परेश ) से वरावर कहती आई हूँ कि आप सुचरिता को अच्छी कहकर प्रशंसा करते हैं सो बाहरसे वह भले ही अच्छी हो, किन्तु मातरमे वह साफ नहीं हैं ! उसके मन का कोई अत नहीं पा सकता । इतने दिन तक हम लोगोंने उसको जो कुछ मिया नव अर्थ द्रुश्रा : वरदामुन्दरी जानती थी कि घरेश यात्रु मरे दुःख पर ध्यान न देंगे इतना ही नहीं, हरिमोहिनीक पर क्रोध प्रकट करने से परेश बाबून अपमानित होने में भी उसे कुछ सन्देह न था। इसीसे उसका क्रोध और भी बढ़ गया। परेश कुछ भी कहें किन्तु उनका नत अधिकांश बुद्धिमान लोगाने मिन्टना है। इनको प्रमागित करने के लिए वरदानन्दर अपना उन्न बढ़ाने की चेट करने लगः : अपने ननाज क्या प्रधान या ऋन- धान सनी लोगोय. आगे वह देवतः सृजन है. मरी लड़कियाँ उसका यह कुसंस्कार देव कर विगड़ जादगी इस पर वह अनेक प्रकारका टीका टिप्पणी करने लगी। सिर्फ लोगों के आगे सुमाराचना करके बढानुन्दरीने संतोष नहीं वरन् वह सब प्रकारने इरिनाहिनी को नकल न देने लगी ! हरिनाहिनी का चौका बर्तन करने और पानी लाने के लिए एक ग्वाला नौकर था उसको वह हरिमोहिनीके काम के समय कोई दूसरा काम करनेको भेज देती थी। उसकी खोज होने पर कहती थी, क्यों रामदीन तो है। रामदान जाति का दुसाध था। वरदासुन्दरी जानती थी की उसके हाथ का जल हरिमोहिनी ग्रहण न करेगी। किसीके यह कहने पर वह बोलती थी- इतने नेमसे रहना चाहती है तो हमारे ब्राह्मवरमें क्यों आई ? हमारे यहाँ सब नेम धरम न चलेगा? हमारे यहाँ जाति-पाँतिका विचार नहीं -