पृष्ठ:गोरा.pdf/३

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गोरा -- श्रावन का महीना और प्रातः काल का समय था । बसात के दिन होने पर भी इस समय आकाश में बादल नहीं थे। निर्मल स्वच्छ धूप से कलकत्ते का आकाश साफ दिखाई दे रहा था । कालेज की सारी परीक्षाओं को पास करके भविष्य के लिये आगे कोई बात निश्चय न कर विनय भूषण अपने घर पर ही फुरसत का समय बिता रहा था। सड़क के सामने वरांडे पर अकेला खड़ा हुआ रास्ते की भीड़ का दृश्य देखकर अपने मन को बहला रहा था ! अभी तक उसे संसार का कोई ज्ञान न था। न तो उसका विवाह ही हुआ था और न उसे घर गृहस्थी की चिन्ता ही थे। कोई काम न रहने से कभी कभी सभा समिति में प्रवेश कर तथा समाचार पत्रों में लेख आदि लिखकर अपना समय काट लेता था । पर इतने से ही उसको सन्तोष न था, वह कोई बड़ा काम करने की बात को सोचा करता था | अाज सबेरे से उसके पास कोई काम न होने से उसका मन चंचल हो उठा था । बहुत कुछ सोच करके भी वह कुछ निश्चय न कर सका कि क्या करूँ । इतने में ही देखा सामने दूकान पर खड़ा हुआ एक भिखारी गा रहा था "खांचार भितर प्राचिन् पाखी केमने अासे जाय । धर्ते पाले मने बेड़ि दितम् पाखीव पाय ।।" विनय की इच्छा हुई कि उस भिखारी को बुलाकर यह अपरिचित चिड़ि- यावाला गीत लिख लेवें, किन्तु जैसे ही उसने उस भिखारी को अपने पास