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गोरा

३१४ ] गोरा चले जानेसे काम नहीं बनेगा। इस बातका जवाब देना होगा। यह साधा- रण बात नहीं है। सुचरिताने झिड़क कर कहा-साधारण हो चाहे न हो, इससे आपको क्या? इसमें आपको कुछ कहनेका अधिकार नहीं है। हारान बाबूने कहा—अधिकार न रहने पर मैं चुप न बैठ रहता बल्कि इसका खयाल भी करता । समाजको तुम लोग भले ही न मानो किन्तु जब तक तुम लोग इस समाज में हो तब तक समाज तुम लोगोंका विचार करेगा ही। तुम समाजके विरुद्ध कोई काम न कर सकोगी। ललिता बबण्डरकी तरह घरमें प्रवेश करके बोली- यदि समाजने अापको विचारकके पद पर नियुक्त किया हो तो उस समाजसे बाहर हो जाना हो हम सबके लिए अच्छा होगा। हारान बाबूने कुरसीसे खड़े होकर कहा -अापके अानेसे मैं बहुत प्रसन्न हुआ। अापके सम्बन्धमें जो नालिस दायर है उसका विचार आपके सामने ही होना ठीक है । क्रोधसे सुचरिताकी भौहें तन गई । उसने कहा-हारान बाबू, आप अपने धरमें जाकर अपना इजलास करें गृहस्थके घरमें आकर आप बढ़ चढ़कर बोले, उनकी निन्दा करें, आपके इस अधिकराको हम लोग किसी तरह नहीं मानेंगी। अायो बहन ललिता, बैठो। ललिता जहाँकी तहाँ खड़ी रही ! उसने कहा-सुनो बहन, मैं मागी नहीं । हारान बाबूको जो कुछ कहना है, कहें । मैं सब सुन लेना चाहती हूँ । कहिए क्या कहते हैं ? हारान बाबू एकाएक रुक गये। परेश बाबूने कहा- नहीं वेटी ! अाज सुरिता मेरे घरसे जायगी अाज सबेरे-सवेर मैं किसी तरहकी अशान्ति या कलह होने न दूंगा । हारान वाबू ! आप बुद्धिमान् हैं । हमसे आज कितने ही अपराध क्यों न हो, आज आपको सब माफ करने होंगे। हारान बाबू गम्भीर भाव धारण कर चुप बैठे रहे । सुचरिता जितनम 7