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गोरा

-1. गोरा (2x बात भी उसे नहीं. कहो। मैं हमेंशासे उसे इस तरह पालती पोसती और आदर प्यार करती आ रही हूँ कि किसी को यह नहीं मालूम हो सका कि. वह मेरी अपनी पेट की लड़की नहीं है । आज उसी का अच्छा फल मुझे उससे मिला ! इस समय मुझे यह चिट्ठी बेकार आप दिखाते हैं आपही लोग जो जान पड़े, करें ! मैं नहीं जानती । हारान बाबूने यह बात अाज स्पष्ट स्वीकार करके अत्यन्त उदार भाव से पश्चात्ताप प्रकट किया कि उन्होंने पहलो वरदासुन्दरी को पहचाना नहीं था- यह उनके सम्बन्धमें भूल कर बैठे थे । अन्तको परेश बाबूको बुला-- कर वहीं चिट्ठी उनके हाथमें दे दिया, परेशने दो तीन बार उसे पाटकर. कहा--तो फिर, क्या हुआ। वरदासुन्दरीने उत्तेजित हो कर कहा-क्या हुआ ! और क्या होना चाहिए ! अब और बाकी ही क्या रहा ? ठाकुर पूजा, जाति-पाँति का पचढ़ा मानना, सभी तो हो गया, अब केवल हिन्दूके घर तुम्हारी लड़की; का व्याह होना भर ही रह गया है ! वह भी हो जाय--वस । उसके बाद प्रायश्चित करके हिन्दू-समाजमें दाखिल हो जाओगे - मैं लेकिन कहे रक्ती हूं...! परेश बाबू ने जरा हँस कर कहा- तुमको कुछ भी कहना न होगा। कमसे कम अब भी कहने का समय नहीं हुत्रा ! मेरा कहना यह है कि तुम क्यों यह ठीक किये बैठी हो कि हिन्दू के घर में ही ललिताका न्याह ठीक हो गया है। इस चिट्ठी में उस तरहकी कोई बात मैं देखता नहीं। वरदा-क्या होने से तुम देख पाते हो, सो तो श्राब तक मैंने समझ नहीं पाया । समय रहते पहले ही अमर तुम देख पाते, तो श्राज इतनी बड़ी घटना घटती ही नहीं। बतायो तो, चिट्ठी में अादमी इससे बढ़कर और कहाँ तक खोजकर लिख सकता है ! हारान-मुझे जान पड़ता है, ललिता को यह चिट्ठी दिखाकर उसका अभिप्राय क्या है, यह उसीसे पूछना उचित है । अप लोग अगर अनु. मति दें, तो मैं ही उससे पूछ सकता हूँ।