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गोरा

३६६ ] गोरा जानता था । आज जब शतीशने सुचरिताके कानमें हारान बाबूके आने की बात कही और सुचरिता चौंकर बड़ी शीघ्रतासे नीचे चली गई तथा फिर थोड़ी ही देर बाद उसे अपने साथ ऊपर ले आई गोराके मनमें इससे बड़ी चिन्ता हुई। इसके बाद जब हारान बाबूको कमरेमें अकेला छोड़ सुचरिता गोराको जलपान कराने के लिए ले गई तब यह व्यवहार भी गोरा को अच्छा न लगा परन्तु अधिक घनिष्ठताकी जगह ऐसा रूखा व्यवहार हो सकता है, यह समझ कर गोराने इसे आत्मीयताका ही लक्ष्य समझा । इसके अनन्तर टेबल पर यह चिट्ठी देखकर गोराके मनमें एक भारी धक्का लगा। पत्र बड़ी ही रहस्यमय वस्तु है। वह बाहरसे केवल नाम दिखाकर भीतर सब बातें रख लेती है जिससे मनुष्य भांति-भांतिके तर्क- वितर्क करने लग जाते हैं, मूल कुछ न रहने पर भी उन्हे अाकाश- पातालकी बातें सोचनी पड़ती है। गोराने सुचरिताके मुंहकी ओर देखकर कहा-मैं कल पाऊँगा। सुचरिताने नीची नजर करके कहा-~-बहुत अच्छा ।