पृष्ठ:गोरा.pdf/४१२

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[६१] आज सवेरे से गोरा के घर में खूब धूमधाम है । पहले महिमने हुक्का पोते-पीते यहां आकर गोरासे पूछा-मालूम होता है, इतने दिन बाद बिनय ने अपना बन्धन काट डाला? गोरा की समझमें यह बात न आई। वह भाईके मुंहकी ओर देखने लगा । महिमने कहा- मेरे आगे कपट करने से क्या होगा ? तुम्हारे मित्रकी बात तो अब. लिली नहीं रही। सर्वत्र डङ्का पिट गया। यह देखो ना यह कहकर महिमने गोरा के हाथमें एक समाचार पत्र दिया । उसमें रविवारको विनयके ब्राह्म-समाजमें दीक्षा लेनेकी बात खूब बढ़ा-चढ़ाकर. छापी गई थी। गोराने जब कहा-मैं यह हाल नहीं जानता तब महिमने पहले उसके इस कथन पर विश्वास नहीं किया। पीछे वह विनयके इस गहरे कपट व्यवहार पर बार-बार आश्चर्य करने लगा, और चलते समय कह गया कि त्यष्ट वाक्य से शशिमुखी के व्याह में सम्मति देकर उसके बाद जब विनय अपनी सम्मति बदलने लगा था तभी हमको समझ लेना चाहिए था कि उसके सर्वनाशका प्रारम्भ हो गया है। अविनाश हाँपते-हाँफते पाकर बोला-गोरा यह क्या जिसका कभी स्वप्नमें भी अनुभव न हुअा था विनय बाबूने आखिर- अविनाश अपने कथनको पूरा भी नहीं कर सका। विनयको इस लाल्छनासे उसको इतना हर्ष हो रहा था कि इस पर कृत्रिम खेद करना उसके लिए कठिन हो पड़ा। देखते-देखते गोराके दलके प्रधान-प्रधान सभी लोग आ जुटे। विनय