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गोरा [४११ किन्तु ललिता के साथ विनयके व्याहमें जब कुछ दोष नहीं, वरन व्याह होना ही उचित है, तब यदि समाजमें विग्रह उपस्थित हो तो उस विग्रह को हम विग्रह नहीं मानेंगे । मनुष्यको समाज के दबाव में पड़कर कर्तब्यसे संकुचित हो रहना ठीक नहीं । मनुष्यका कर्तव्य सोचकर समाजको ही अपनी स्थिति सुधारनी चाहिये । इस कारण जो लोग दुःख स्वीकार करने को राजी है, मैं उनकी निन्दा नहीं कर सकता। सुचरिता ने कह्म-इसमें तो सबसे बढ़कर आप ही को दुःख स्वीकार करना होगा। परेश---यह बात सोचने की नहीं है। सुचरिता ने पूछा--तो क्या आपने सन्मति दे दी है ? परेश ने कहा--नहीं, अभी तो नहीं दी है किन्तु देनी ही होगी: ललिता जिस मार्ग में जा रही है, उस मार्ग में मुझे छोड़ कौन उने आशीर्वाद देगा और ईश्वरको छोड़ उसका सहायक कौन होगा ? परेशबाबू जब चले गये तव सुचरिता स्थिर होकर बैटी रही ! बलू जानती थी कि परेश धाबू ललिता को हृदय से कितना न्यार करते हैं। वह ललिता नियत मार्ग को छोड़कर एक अपरिचित मार्गसे चलने को तैयार हो गई है। इससे उनका मन कितना व्याकुल हो रहा है, यह समझनेमें उसको कुछ कठिनाई न रही।