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गोरा

- गोरा [re हरिमोहिनी जैसी बात सुनना पसन्द करती थी ठीक वैसी गोरा की बात न होती थी। वह भक्तिकी बात सुनना चाहती थी। किन्तु गोरा के मुँहसे भक्तिको वात वैसी सरस और रोचक न निकलती थी। आज सबेरे गोरा जब सुचरिता के घर पहुंचा तब हरिमोहिनी ठाकुर जी की पूजा कर रही थी। सुचरिता अपनी बैठक में टेवल पर पुस्तक आदि वस्तुओंके सँवारने में लगी थी। ठीक इसी समय सतीशने आकर खबर दी कि गौर बाबू आये हैं । सुचरिता सुनकर विशेष उत्कण्ठित न हुई । मानों वह पहले ही से जानती थी कि गौर बाबु अाज अावेंगे। गोरा कुर्सी पर बैठते ही बोला -- अाखिर विनयने हम लोगों को छोड़ ही दिया सुचरिता -छोड़ेंगे कैसे ! वे तो ब्राह्म-समाजमें सम्मिलित नहीं हुए। गोरा-ब्राह्म-समाज में सम्मिलित हो जाता तर तो कोई बात हो न थो । तव वह किसी तरह हमारे पास ही रहता। वह हिन्दू-समाजका गला खूब कसकर पकड़े हुए हैं, यही बात सबसे बढ़कर कष्टप्रद है। इससे हमारे समाज को वह एकदम छोड़ देता तो बड़ा उपकार करता । सुचरिता ने मन में गहरी चोट खाकर कहा-आप समाज को इस प्रकार अत्यन्त एकान्त दृष्टि से क्यों देखते है ? समाज के ऊपर जो आप इतना अधिक विश्वास रखते हैं यह क्या आपका लामाविक विश्वास है, क्या अपने ऊपर बलप्रयोग करके ही ऐसा करते हैं ? गोरा--ऐसी अवस्था में यह बलप्रयोग करना ही त्वाभाविक है। जहाँ गिरने का खौफ है, वहाँ पैर पर जोर देकर ही चलना होता है। यह चायें भोर जो बिरुद्धता का साम्राज्य फैल रहा है, उससे मेरे वाक्य और व्यव- हार में कुछ बाहुल्य पाया जाता है, यह अस्वाभाविक नहीं है। सुचरिता---यह जो चारों ओर आप विरूद्धता देख रहे हैं, उसे एकाएक अन्याय और अनावश्यक क्यों समझ रहे हैं ? यदि समयकी गति में समाज बाधा दे तो समाजको अधात सहना पड़ेगा। 1