पृष्ठ:गोरा.pdf/५३

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गोरा

गोरा [ ५३ फिर विनयकी ओर देख कर कहा--आप शायद किसी कामसे जारहे थे विनय बाबू ?~-आपको कोई असुविधा तो नहीं हुई । सुचरिता बिनयको सम्बोधन करके कोई बात कहेगी, विनयने इसकी प्रत्याशा ही नहीं की थी। वह कुठित और ब्यस्त हो उठा, कहने लगा- ना, मुझे कुछ भी असुविधा नहीं हुई। . सतीशने सुचरिताका कपड़ा खींचकर कहा--दीदी, चाभी लाओ न । . अपना वह आर्गन ( बाजा ) लाकर विनय बाबूको दिखाऊँ । सुचरिताने हँसकर कहा---यह लो शुरू हो गया ! जिसके साय बक्तियारकी दोस्ती होगी, उसकी फिर जान नहीं बच सकती--आर्गन तो सुनना ही पड़ेगा--और भी अनेक तरहसे आपको तंग करेगा--विनय बाबू, आपका यह मित्र छोटा है, किन्तु इसकी मित्रताका उत्पात बहुत बड़ा है। मालूम नहीं, उसे श्राप सह सकेंगे या नहीं । विनयने संकोच भावसे उत्तर दिया--ना, आप कुछ भी ख्याल न करें । नुके यह सब खूब अच्छा लगता है। सतीश अपनी दीदीके पाससे चाभी लेकर आर्गन बाजा और कुछ खिलौने उठा लाया । और बहुत देर तक अपने अभ्यास किये हुये अनेक खेज और बाजेसे सबोंका मनोरंजन करने लगा। कुछ देर बाद लीलाने वहाँ आकर कहा-बाबू जी माँ तुम लोगोंको पर बुला रही हैं। --*****--