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गोरा

गोरा [ ५५ श्राई । साथमें एक युवक भी श्राया; वह उनका दूरके नातेका कोई आत्मीय था। परेश बाबूकी स्त्रीका नाम बरदासुन्दरी है। उनकी अवस्था कम नहीं है, किन्तु उन्हें देखते ही यह समझमें आ जाता है कि वह विशेष यत्न के साथ सजावट करके आई है। अधिक अवस्था दिहातकी औरतोंकी तरह बिता कर एक दम एक समयसे वह एक नये जमाने के साथ चलनेके लिये व्यस्त हो पड़ी है। इसी कारण उनकी रेशमी साड़ी जरा अधिक खसखसाती है, और उँची एड़ीका भूता खूब खट खट बोलता है। पृथ्वीमें क्रौन चीज ब्राह्म है और कौन अब्राह्म है इसीके भेद को ले कर वहं सदा अत्यन्त चौकन्नी रहती है। इसी कारणसे तो उन्होंने राधारानी के नामको बदल कर सुचरिता रख दिया है ! . उनकी बड़ी लड़कीका नाम लावण्य है। वह खूब मोटी नानी और हंसमुख है। लोगोंसे बात-चीत अधिक करना पसन्द करती हैं। उसका चेहरा गोल, दोनों आखें बड़ी और रंग उज्ज्वल श्याम है । साज सिंगारके बारेमें वह स्वभावसे ही कुछ ढीली ढाली हैं, लेकिन इस मामलेमें उसे अपनी माँकी श्राज्ञा मान कर चलना होता है । उँची एडीका जूता पहनने में उसे सुविधा नहीं मालूम होती तब भी पहनना ही पड़ता है ! तीसरे पहर सिंगार करने के समय माँ अपने हाथ से उसके मुँहमें पाउडर और गालोंमें रङ्ग लगा देती है। वह जरा मोटी है, इसलिए वरदानन्दरी उसका सलूका ऐसा कसा बनवाती है कि लावण्य जब पहन ओढ़ कर बाहर निकलती है, तब जान पड़ता है जैसे उसे पाटके बोरे की तरह कलमें दबाकर कसकर बांध दिया गया है। मैंझली लड़कीका नाम ललिता है। उसे बड़ी लड़कीके विपरीत. कहना ही ठीक होगा। अपनी बहन की अपेक्षा उसका सिर लम्बा है, रोगीसी जान पड़ती है; रंग जरा और साँवला है, बातचीत अधिक नहीं करतो । वह अपने मन के माफिक चलती है । जी चाहे तो कड़ी से कड़ी ।