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गोरा

गोरा [१ और उसे नमस्कार करके बह झटपट गोराके पीछे हो लिया। हारान बाजू इस समय वहाँ न थे । वह पहले ही वहाँ से हट कर कमरेके भीतर चले गये और टेबुलके ऊपरसे एक ब्रह्म संगीत की पोथी ले उसके पन्ने उलटने लगे। विनय और गोराके चले जाने पर हारान बाबू फिर झट छत पर आये। उन्होंने परेश बाबूसे कहा-देखिये सभीके साथ बहू-बेटियों को बातचीत करने देना मैं अच्छा नहीं समझता ! मुचरिता पहले ही से भीतर ही भीतर बहुत खफा थी। इसीसे वह अपने मनकों रोक न सकी, बोली--अगर बाबूजी इस नियमको मानते तब तो आपके साथ भी हम लोगोंकी बातचीत न हो सकती। हारान-बातचीत या मेल-मुलाकात अपने समाज के भीतर ही होना ठीक है। परेश वाबूने हँसकर कहा -आप पारेवारिक अन्तःपुरको और कुछ बड़ा करके सामाजिक अन्तःपुर बनाना चाहते हैं । किन्तु मैं समझता हूं कि नाना मतके सज्जनोंसे लड़कियोंका मिलना उचित ही है इससे उनकी बुद्धिका अच्छा विकास होता है। इसमें बाधा देनेसे वे संसारकी बहुतेरी अच्छी बातोंको नहीं जान सकतीं । इसमें भय या लज्जाका कोई कारण नहीं देखते। हारान-भिन्न मतके लोगों के साथ बहू-बेटियाँ न मिलें, यह मैं नहीं कहता, किन्तु इनके साथ कैसा व्यवहार करना होता है, उस शिष्टताको तो ये लोग नहीं जानते। परेश-नहीं, नहीं ! यह क्या कहते हैं ! आप जिसे भद्रताका अभाव कहते हैं, यह एक संकोचमात्र है। पराई बहू-बेटियों के साथ बातचीत करनेमें बहुत लोग सकुचाते हैं । स्त्रियोंके साथ हेलमेल किये बिना वह संकोच मिट नहीं सकता।