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गोरा

गोरा कुछ दूर बाते पीछेसे किसीने पुकारा--विनय बाबू ! विनयने धूमकर देखा सतीश उसे पुकार रहा है। सतीशको साथ लेकर विनय फिर घर आया । सतीशने जेबसे रुमाल की पोटली निकाल कर कहा-- रंगून में मेरे एक मामा हैं, उन्होंने वहाँके ये फल माँ के पास भेजे हैं । उन्हीं में से ये पाँच-छः फल माँने सौगातके तौर पर आपके पास भेजे हैं। विनयने फल ले लिया। उसके बाद दोनों असमान अवस्थाके मित्रोंमें कुछ देर तक कौतुक- मय वार्तालाप जब होचुका, तब सतीशने कहा -विनय बाबू माँने कहा है, यदि फुरसत हो तो आप एक बार हमारे घर अवश्य अावे; आज लीला की वर्षगाँठका दिन है। विनयने कहा--आज, भाई मुझे समय नहीं मिलेगा और एक जगह जरूरी कामसे जारहा हूँ। सतीश-कहाँ जरहे हैं ? विनय-अपने मित्रके घर। सतीस - अापके वही मित्र । विनय-हाँ। विनय मित्रके घर जा सकता है, लेकिन उसके घर नहीं जा सकता, इस बातका युक्तिसंगत होना सतीशकी समझ में नहीं आया, विशेष कर विनयके वह मित्र सतीशको अच्छा नहीं लगा था। सतीश की दृष्टि में वह जैसे स्कूलके हेडमास्टरसे भी कड़ा आदमी है। उसे कोई श्रार्गन बाजा सुना कर यश प्राप्त कर सके, वह ऐसा आदमी ही नहीं है। विनयका ऐसे आदमी के पास जानेका कुछ भी प्रयोजन समझना सतीशको बिल्कुल ही अच्छा नहीं लगा । उसने कहा-नहीं विनय बाबू, आप हमारे ही वर चलिये। विनय को हार मानते अधिक देर नहीं लगी। दुविधा करते-करते मनके भीतर आपत्ति करते-करते. अन्त में बालकका हाथ पकड़ कर