कामरेड १११ उसकी श्रात्मा में मर जाती और मनुष्य की नपुंसकता की कराहट , उन दुसी और दीन मनुष्यों को कराह और चीख पुकारों के लयहीन संगीत में इव जाती जो जिन्दगी के शिकंजे में पड़े तड़फडा रहे थे । । वहाँ सदैव नीरसता और उद्विग्नता तथा कभी कभी भय का वाता वरण छाया रहता और वह अन्धकारपूर्ण अवसाद में लिपटा हुआ नगर अपने एक से विद्रोही पत्थरों के ढेर को लिए जो मन्दिरो को कलंकित कर रहे थे, मनुष्यों को एक कारागृह के समान घेरे तथा सूर्य की किरणों को ऊपर ही ऊपर लौटाते हुए, चुपचाप खड़ा था । वहाँ जीवन के संगीत मे क्रोध और दुख को चीस , छिपी हुई घृणा को एक धीमी फुसकार , क्रूरता का भयभीत करने वाला कोलाहल और हिसा की भयकर पुकार भरी हुई थी । [ २ ] दुग्य और दुर्भाग्य के अवसादपूर्ण कोलाहल के बीच लालच और इच्छानो के दृढ़ बन्धन में जकड़े हुए , दयनीय गर्व की कीचड में फंसे हुए थोड़े से एकाको स्वम दृष्टा उन झोपडियो की पोर चुपचाप , दिप कर चले चले जा रहे थे जहाँ वे निर्धन व्यक्ति रहते थे जिन्होंने नगर की समृद्धि का बढ़ाया था । तिरस्कृत और उपेक्षित होते हुए भी मानव में पूर्ण थास्था रप ये विद्रोह की शिक्षा देते थे । वे दूर पर प्रज्वलित सत्य की विद्रोही चिनगारियों के समान थे । वे उन झोपड़ियों में अपने साथ दिपाकर एक सादे परन्तु उच्च सिन्हान्त की शिना के फल देने वाले वीस लाए थे । और कभी अपनी बॉली - में कठोरता की ठंडी चमक भर कर और कभी सज्जनता और प्रेम से उन गुलाम मनुप्यो के रदय में इस प्रकाशवान प्रज्वलित सत्य की जट रोपने का प्रयत्न करने , उन मनुप्या के हृदय में , जिन्हें अर और लालची व्यकियों ने अपने लाभ के लिए धन्धे और गूंगे हथियारों में बदल दिया था । यौर ये अभागे, पोदित मनुष्य अविन्याम पूर्वक इन नवीन गदा का
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