११२ कामरेड संगीत को सुनतीं- एक ऐसा संगीत जिसके लिए उनके क्लान्त हृदय युगों से प्रतीक्षा कर रहे थे । धीरे धीरे उन्होंने अपने सिर उठाए और अपने को ठन चालाकी से भरी हुई मूठी बातो के जाल से मुक्त कर लिया जिसमें उनके शक्तिशालो और लालची अत्याचारियों ने उन्हें फसा रखा था । उनके जीवन में , जिसमें उदासी से भरा हुया दमित असन्तोष ग्याप्त था , उनके हृदयों में जो अनेक अत्याचार सहकर विषाक बन चुके थे, उनके मस्तिष्क में जो शक्तिशालियों की धूर्तता पूर्ण चतुरता से जड़ हो गया था - उस कठोर और दीन अस्तित्व में जो भयकर अत्याचारों से सूख चुका था - एक सीधा सा दोप्तमान शब्द व्याप्त हो उठा । " कामरेड " यह उनके लिये नया नहीं था । उन्होंने इसे सुना था और स्वयं भी इसका उच्चारण किया था । परन्तु तब तक इसमें भी वही रिकता और से ही अन्य परिचित और साधारण शन्दों में भरी रहती हैं जिन्हें भूल जाने से कोई नुकसान नहीं होता । परन्तु अब इसमें एक नई झकार थी .. सशक्त और स्पष्ट । एक नए अर्थ का संगीत न्यास था और एक हीरे के समान कठोर चमक और दिग्व्यापी ध्वनि थी । उन्होंने इसे अपनाया और इसका उच्चारण किया . सावधानी से नम्रता पूर्वक और इसे अपने हृदय से इतने स्नेह पूर्वक लगा लिया जैसे माता अपने पन्चे को पालने में मुलाती है । और जैसे जैसे वे इस शब्द को जाज्वल्यमान प्रा मा में भीतर प्रविष्ट होते गए वह उन्हें उतना ही अधिक उज्वल और सुन्दर दिखाई देता गया है । " कामरेड । " उन्होंने कहा । और उन्होंने अनुभव किया कि यह शब्द सम्पूर्ण संसार को एक सूत्र में संगठित करने के लिए सब मनुष्यों को श्राजादी की सब से ऊँची चोटी सरु उठा कर उन्हें नए बन्धनों में बाँधने के लिए - एक दूसरे का सम्मान तम्रा
पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/११०
दिखावट