पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१३५

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माईबीया की लड़की १३७ भीगी जाकेट फर्श पर पड़ी थी । वह एक हाथ हिलाते हुए तथा दूसरे से अपना गला रगढते हुए तेजी से बोल रहा थाः __ "मैं जानवर नहीं हूँ ! मैं समझता हूँ - उसका कोई दोष नहीं... " - लड़की किन्हीं अदृश्य हाथो द्वारा जोर से घुमाए जाते हुए लह की तरह कमरे में इधर उधर दौड़ रही थी । समोवार जलाने के लिए घुटनों पर रस कर लकड़ियों को तोड़ती जाती थी । कोयलों को सम्हालने में खसखसाहट की अावाज उठ रही थी और उसके पीछे उस शाल के छोर लटक रहे थे जो उसने अपने नंगे कन्धों पर डाल रखा था । __ " देखो , मै तुम्हारे पास पाया हयद्यपि मेरे और भी साथी हैं परन्तु मुझे उनसे यह सब कहने में झिझक लगती है हालाँकि मैं विश्वासपूर्वक कह __ सकता हूं कि उनकी जिन्दगी में भी ये दिन श्राये होंगे जब घर में एक दूसरे ___ को सताता है क्यों ? मुझे बतायो ऐसा क्या होता है । " " मैं कैसे जान सकती हूँ ? " उसने एक धोमा उत्तर सुना । " यह गन्दी ज़िन्दगी श्रादमियों की हड्डी तक को चूस डालती है और हृदय को भी - और एक दिन अचानक तुम पाते हा कि तुम्हारा हृदय वेदना और घृणा से जल रहा है.. " लटकी उसके पास श्राई , धीरे से उसकी कमीज को सहलाया और शासे झपकाती हुई बोलीः " तुम बिल्कुल भीग रहे हो - और मेरे पास कुछ भी नहीं जिसे तुम्हें __ दे सक् ... यव क्या किया जाय ? " "काई फिकर को यात नहीं पावेल ने उसका हाथ पकडते हुए कहाः उसने चाहिस्ते से श्यपनी उँगलियाँ छुटा कर हमदर्दी दिपाते हुए कहाः " तुम्हे ठंड लग जायगी और बीमार पद जायोगे एक कामकाजी प्रारमी के लिये यह बहुत बुरी बात है । " वह दहलीज में गई और तुरन्त ही एक रंगीन धारीदार कपडा लेकर 4