पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१४१

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मोड वीया की बदको "सव समाप्त होगया ! " प्रारम्भ में तो उसके मनमें यह विधार दृढ़ता से उठा कि वह उसके बारे में अपनी स्त्री को सब कुछ बतादे और इस तरह बताए जिससे उसको स्त्री अपने अपराध को समझ सके और उस सरे को महसूस करने लगे जो उन दोनों के लिए उनकी इस शामिक कलह में छिपा हुया था । परन्तु वह इस यात को देने में डरता था । वे पण , जब उसकी म्त्री का मिजाज अच्छा और प्यार से भरा होता, बहुत जल्दी बीत जाते और जब कभी वह ऐसा विषय छेहता जिससे तुरन्त ही घर को कोई लाभ नहीं हो सकता था तो वह उसके प्यार से पूरी तरह सन्तुष्ट होकर एक लम्बी सम्हाई लेती और थालस्यपूर्ण थावाज में यह कहती हुई विषय को बदल देसी : " भगवान के लिए, उसी पुराने राग को फिर मत छेदो .. " यह विनती करती और भाज्ञा देती : " अपने इन शब्दों को दूर रख कर ही मुझे प्यार फरी . . . . . " अगर वह अपनी बात पर जोर देता तो उसकी स्त्री की माहों में रल पद जाते, उसको धोखें नीरस होकर चमकने लगी और वह विचिदी होकर उससे प्रार्थना करती : __ " यह बातें बन्द करो - मैं कहे देवी है - मत भूलो कि तुम्हारे बच्चे हैं । इन बातों को यवाने वाली कितायें घर पर याहुत है - एक पूरी आएमारो भरी है एक शादीशुदा बादमी को क्विायों और कामरेडों से कोई वास्ता नहीं बना चाहिए देसो घरवार पाले कितने भादमी इन बातों को सो चुचे. ६ - घे चुपचाप अपना काम करते है - अपनी स्त्रियों और बच्चों के लिए । यल सीकोय घनो स्त्री के साथ नुम लोगों का सायी ६ परन्तु वह तुम्हारे पास कसी हालत में धावा है ? क्यों , दिल्ले महीने वह सिर्फ तीस स्थल घर लाया या । टस पर दो यार जुर्माना किया गया था . ... " ट्रेप के कारण उत्साहित होकर अपने पास पड़ोस की प्रत्याहाँ