पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१४४

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मोट्वीया की लड़की - - - - - - - - - - -- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - यहाँ सफ कि चों में भी श्रादमी जगह के लिए लहते हैं । छोटे बच्चों पर मार पड़ती है । श्रादमी गिरफ्तार होते हैं और फांसी पर लटका दिये जाते हैं । और कितनों का खून कर दिया जाता है । पुलिस श्रादमियों को बुरी घरह मारती है । लेकिन आदमी एक दूसरे को भी पीटते हैं । वे केवल कुढ़ कर ही दूसरों को पीटते हैं । उस समय मैंने भी कुढ़ कर वह करना चाहा था । मैं अपने प्रति भयंकर हो उठी थी - तुम किसलिए जो रही हो , मूर्ख ? दुनियाँ में भने श्रादमी नहीं हैं और इसी से यह इतनी भयानक होगई है । हो सकता है कुछ थोड़े से हों भी - एक यहाँ, दूसरा वहाँ " परन्तु ऐसे मुश्किल से ही नजर आते हैं । " वह उसकी बातें सुनकर उस पर हसा, परन्तु लिज़ा ने अपनी बातें इतनी सरलता से कही थीं - उनमें बनावट या कल्पना की छाया भी नहीं थो - कि उन्होंने पावेल के हृदय में उसके प्रति क्षमा की भावना उत्पन्न करदी और उन दोनों को , एक दूसरे को समझने की भावना के कोमन सूत्र से , और नजदीक ला दिया । यह सूत्र लिज़ा के सच्चे - अकल्पित विश्वास और पावेल के कठोर शुष्क ज्ञान को एक दूसरे से श्राबद्ध फर रहा था । अनेक वार वह मजाक करते हुए हंसकर और गम्भीर हो अपने विषय पर लौटा परन्तु हर बार उसे नम्र विरोध का सामना करना पड़ा । लिजा ने न तो विरोध किया और न उसके सर्को से अपने को विचलित ही होने दिया । " तुम वहुत आगे देख रही हो तुम बहुत अधिक चाहती हो ! " उसने इंसते हुए कहा - "हम और तुम उस शान्ति को नहीं देख पायेंगे । हमारी जिन्दगी सघर्ष में ही बीत जायगी । " उसने इस पर सोचा और जवाब दिया । "अगर तुम यह जानते हो कि कल अच्छा होगा तो श्राज की बुरी चीजें इतनी भयंकर नहीं लगती और वे इसनी शक्तिशाली भी नहीं दिखाई देवीं ... "