सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मोठ्वीया को लदको " उसके बाल सुन्दर है । उसने अपने आप को याद दिलाई । वह लिजा में स्त्री को सुन्दरता को किसी न किसी रूप में देखना चाहता था । ___ "कितने थाकर्षक वाल हैं; कितने कोमल ! उसकी आँखें भी कितनी प्यारी हैं ...... " परन्तु किसी ने भोता से विरोध किया : "उसके घुटनों को पहियों निग्ली हुई हैं । कन्धे भी ... " जिजा के कमरे की खिड़को में से अन्धकार उसे घूर रहा था । उसने कॉच से थपना मुंह सटाकर उस छोटो खिड़को पर उंगलियों से धीरे धीरे खटखटाना प्रारम्भ किया जैसा कि वह हमेशा किया करता था । यहुत देर सक सामोशी रही और फिर रोशनदान में से एक अजीव धीमी सी आवाज लाई : "तुम किम चाहते हो ? " " क्या लिजा घर पर है? " एक स्पष्ट उत्तर सुनाई दिया : " वह यहाँ नहीं रहती । " " तुम क्या कह रही हो ? " " यह घलो गई ! " " यह क्य गई ? " " चार दिन हो गए ! अब तुम भाग जानी । " " एक मिन्ट ठहरो " अपने सीने को दीयान से सटाते हुए पायेल ने जोर से कहा - “ पया यह मेरे लिए कोई सन्देशही छोड ग ? " " तुम कौन हो ? "माफीच -पाल माकीय " " तुम्हारे लिए एक चिट यहाँ । मैं हमें विदशी से पक रही है ... " एक रोशनी धनी र मुग्नत गायब हो गई । दमरी बार फिर रोशनी यमसी चौरी एक पीछे चहरे की