१५८ मोहवीया की लड़की घरह चमक उठी जिस पर एक काला विरछा घाव का निशान पड़ा हो । एक कागज का सफेद खदखदाता हुश्रा कोना खिड़की से बाहर निकला । पावेल ने उसे पकड लिया , खोला और खिड़की की धुंधली रोशनी में बड़े बड़े अक्षरों को पढ़ने लगा . "पावेल मिटिच, मेरे प्यारे श्रादमी , मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हू परन्तु यह बहुत बुरा होगा जैसे कि तुम्हारी स्त्री के साथ होगा - बिलकुल वही बात है । क्योंकि मेरे मन में तुम्हारी स्त्री के प्रति द्वष पैदा होगया है । मैं उसे घृणा करती हूं और तुम्हारे लिए यह फिर वैसी ही चीज हो जायगी इसलिए मैं जा रही हूँ, नहीं जानती कहाँ, लिजा वेटा । " उसने कागज को मरोड़ डाला परन्तु फिर फौरन ही उसे खोला, एकबार फिर उसकी टेढ़ी मेढ़ी पकियों को देखा , फिर तुरन्त उसके टुकड़े कर ढाले और तिरस्कारपूर्वक अपने आप से कहा " इससे अच्छी किसी चीज के लिए न सोच सकी यदसूरत कुतिया ; उसने धीरे से उन टुकड़ों को जमीन पर डाल दिया और मैदान की ओर देखने लगा - विलकुल हताश और एकाकी - अपने हृदय की तरह जिसे अचानक एक भय ने जकड लिया था । " बेवकूफ जएकी " चहार दीवारी को अपने कन्धों से रगडते हुए बहुत खामोशी से वह पीछे मुहा और ठदास होकर चड़वड़ाया . " श्रोह , लिजा, तुम कहाँ चली गई ? ... ........ "
पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१५८
दिखावट